(प्रस्तुत लेख रवींद्रनाथ
ठाकुर की पुस्तक ‘पोएम्स ऑफ़ कबीर’ की श्रीमती एवेलिन अंडरहिल लिखित भूमिका है| रवि
बाबू को कबीर बहुत प्रिय थे| उनका रहस्यभाव उन्हें विशेष रूप से आकर्षित करता
था|उन्होनें कबीर की सौ कविताओं का अंगरेजी में अनुवाद किया|वे कविताएँ ‘पोएम्स ऑफ़
कबीर’ नाम से १९१५ में लन्दन से प्रकाशित हुईं|इस पुस्तक की लम्बी भूमिका
इंट्रोडक्शन’ नाम से अंडरहिल ने लिखी|उस पुस्तक के प्रकाशन में उन्होंने भी विशेष
दिलचस्पी दिखाई| ‘पोएम्स ऑफ़ कबीर’ के अनुवाद और प्रकाशन का मूल उद्देश्य था-कबीर
के प्रतिभा से यूरोपीय पाठकों को परचित कराना|
ऐवलिन अंडरहिल(१८७५-१९४१)इंगलैंड निवासी थीं|वे अंग्रेजी की लेखिका और कवयित्री थीं|लेकिन उन्हें विशेष प्रसिद्धि रहस्यवाद की विशेषज्ञ के रूप में मिली|यूरोपीय रहस्यवाद की तो वे अधिकारी विदुषी मानी जाती हैं|अपने समकालीन बौद्धिकों के बीच रहस्यात्मक ब्रह्म विज्ञान को एक प्रतिष्ठित अनुशासन बनाने में उन्होंने ऐतिहासिक भूमिका निभाई|कविता संग्रहों के अतिरिक्त उनकी प्रसिद्द पुस्तकें हैं-मिस्टिसिज्म’,दि मिस्टिक वे’, ‘वरशिप’, ‘मैन एंड दि सुपरनेचुरल’, ‘दि मिस्ट्री ऑफ़ सेक्रिफायस’ आदि|मिस्टिसिज्म (१९११) उनकी सर्वाधिक चर्चित और विश्वप्रसिद्ध पुस्तक है|
‘पोएम्स ऑफ़ कबीर’ में प्रायः वे कवितायें हैं,जिनका सम्बन्ध कबीर की रहस्य-भावना से है|विषय की मांग और रहस्यवाद में अपनी विशेष दिलचस्पी के कारण अंडरहिल ने कबीर की रहस्य-भावना के गहन विवेचन के साथ उसकी बहुत-सी ऐसी विशेषताएं खोज निकाली हैं,जिनको हिंदी आलचकों ने प्रायः नहीं देखा है|सामाजिक संदर्भो से जुड़ी कबीर की कविताओं की बड़ी चर्चा होती है|लेकिन सामाजिकता के आग्रही आलोचकों के लिए भी कबीर की रहस्य-भावना का कोई सुसंगत सामाजिक आधार खोजना प्रायः मुश्किल होता है|बहुत-से लोगों का आज भी यह विचार है कि रवींद्रनाथ और अंडरहिल ने ‘पोएम्स ऑफ़ कबीर’ के जरिए कबीर की रहस्यवादी मूर्ति गढ़ने की कोशिश की|अंडरहिल का प्रस्तुत लेख इस दृष्टि से ऐतिहासिक महत्व का है कि इसमें संभवतः पहली बार कबीर के रहस्यवाद के सामाजिक सन्दर्भों को बहुत हद तक समझने की कोशिश दिखाई पड़ती है|कबीर के रहस्यवाद के इस विश्लेषण से हिंदी के विद्वान तो परिचित हैं,लेकिन पुस्तक की अनुपलब्धता के कारण अब आम पाठकों के लिए यह आसानी से सुलभ नहीं है|प्रस्तुत अनुवाद का उद्देश्य कबीर की छः सौवीं जयंती के अवसर पर कबीर सम्बन्धी इस दुर्लभ चर्चा की याद को ताजा करना है|
रहस्य-भावना प्रत्यक्ष सच्चाई नहीं,बल्कि व्यक्तिगत भाव और अनुभूति है |व्यक्तिगत भाव और अनुभूति भी सामान्य स्तर की नहीं,विशेष स्तर की|कबीर की गहन रहस्य-भावना का रहस्यवाद की एक विदुषी लेखिका द्वारा अंगरेजी भाषा में किया गया यह गहन अध्ययन अपने अनुवाद कार्य के लिए जिस गहन धैर्य,योग्यता और सहानुभूति की मांग करता है,वह मुझमें नहीं है|फिर भी कबीर के प्रति प्रेम के कारण इस कार्य को पूरा करना पड़ा|कबीर की साधना और उनके प्रतीकों को समझना जितना कठिन है उतना ही कठिन है किसी विदेशी व्यक्ति द्वारा किये गए अध्ययन को हिंदी पाठकों के लायक बनाना|श्रीमती अंडरहिल ने यह भूमिका यूरोप के पाठकों को ध्यान में रखकर लिखी थी|उन्होंने सूफी और ईसाई रहस्यवादियों से तुलना करते हुए कबीर की जो व्याख्या की है,उसे निर्विवाद नहीं कहा जा सकता|जिस देश-काल के वे उपज थे,उससे भिन्न देश-काल और भाषा में किया गया अध्ययन निर्विवाद हो भी नहीं सकता|अंडरहिल ने रहस्य-भावना की व्याख्या के लिए अंगरेजी भाषा में जिस संश्लिष्ट शैली का प्रयोग किया है,वह हिंदी भाषा के प्रकृति के मेल में नहीं|अनुवाद में मूल वाक्य को बार-बार तोडना पड़ा है|कुछ शब्द अंगरेजी में जो अर्थ देते हैं,हिंदी में वह अर्थ नहीं होता|इन सारी कठिनाइयों के साथ यह अनुवाद कार्य किया|कहीं-कहीं मूल शब्द को कोष्ठक में रख दिया गया है|कुछ जगह अधिक स्पष्टता के लिए कोष्ठक में अपनी ओर से हिंदी शब्द दे दिए गए है1)- अनुवादक
कबीर भारतीय रहस्यवाद के इतिहास में सर्वाधिक
दिलचस्प व्यक्तियों में से एक हैं|उनके गीतों का यह संग्रह अंगरेजी पाठकों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा
है|बनारस में या उसके आस-पास मुसलमान माता-पिता के घर १४४० ई. के लगभग पैदा होने
वाले कबीर जीवन के प्रारंभ में ही प्रख्यात हिन्दू संत रामानंद के शिष्य हो गये
थे|जिस धार्मिक नवजागरण की शुरुआत १२ वीं शताब्दी के महान ब्राह्मणवादी सुधारक
रामानुज ने दक्षिण(भारत) में की थी,उत्तर में उसे रामानंद ले आये|यह नवजागरण अंशतः
सनातनी पूजा पद्धति के रीतिवाद के फैलाव के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया था|यह
(नवजागरण) अंशतः वेदांत-दर्शन के तीव्र बुद्धिवाद के विरुद्ध ह्रदय के पुकार पर
जोर दे रहा था|वेदान्त दर्शन के तीव्र बुद्धिवाद का दावा अतिरंजना के साथ अद्वैत
दर्शन में था|रामानुज के उपदेशों में भगवान् विष्णु के प्रति तीव्र भक्तिभाव
ईश्वरीय सृष्टि(divine nature) की निजी अवधारणा के रूप में प्रकट हो रहा था|वह
रहस्यात्मक ‘प्रेम का धर्म’ आध्यात्मिक संस्कृति के निश्चित सतह पर फैला है|उसके
सिद्धांत और दर्शन अहिंसक हैं|यद्यपि हिन्दू धर्म में ऐसी भक्ति-भावना पहले से है
और इसकी अभिव्यक्ति ‘भगवतगीता’ के बहुत से अनुच्छेदों में मिलती है,तथापि
मध्यकालीन नवजागरण में इसके समन्वय का बड़ा तत्व मौजूद था|कहा जाता है कि रामानंद
के माध्यम से भक्ति की भावधारा कबीर तक आई|रामानंद व्यापक धार्मिक संस्कृति और
मिशनरी उत्साह के व्यक्ति थे|जब महान फ़ारसी रहस्यवादी अतर,सादी,जलालुद्दीन और
हाफिज की भाववेगपूर्ण कविता और गंभीर दर्शन भारतीय धार्मिक चिंतन को जोरदार ढंग से
प्रभावित कर रहा था,रामानंद ने ब्राह्मणवाद के परंपरित ब्रह्म विज्ञान के साथ इस
तीव्र और व्यक्तिगत मुसलमानी रहस्यवाद के मेल-मिलाप का सपना देखा|कुछ लोगों का मानना
है कि ये दोनों धार्मिक नेता(फ़ारसी रहस्यवादी और रामानंद)ईसाई चिंतन और जीवन से भी
प्रभावित है|लेकिन इस मुद्दे पर सक्षम विद्वानों में व्यापक मतभेद हैं|इसलिए इस
विवाद को यहाँ नहीं उठाया जा रहा है|फिर भी हम दावा कर सकते हैं कि उनकी शिक्षाओं में
दो या तीन स्पष्टतः प्रतिकूल तीव्र आध्यात्मिक सांस्कृतिक धाराएँ मिलती हैं,जैसे
यहूदी और यूनानी चिंतन का ईसाई गिरजाघरों में मेल हुआ था|कबीर की प्रतिभा की
उत्कृष्ट विशिष्टताओं में से एक यह है कि वे अपनी कविता में उन सबका समन्वय करने
में समर्थ हुए|
कबीर एक महान धार्मिक सुधारक और एक पंथ के संस्थापक थे,जिससे लाखों उत्तर भारतीय हिन्दू आज भी जुड़े हैं|कबीर अब भी एक गहरे रहस्यवादी कवि के रूप में हमारे सामने हैं| ‘सत्य’ को अभिव्यक्त करने वाले,धार्मिक एकान्तवाद से घृणा करने वाले और मनुष्य को भगवान् की संतान मानकर उसे समता की प्रतीति कराने वाले इस व्यक्ति की नियति यह है कि जिन बंधनों को तोड़ने का उन्होंने जीवन-भर कठोर यत्न किया,उन्हीं बंधनों में उन्हें बांधकर उनके अनुयायियों ने उन्हें सम्मानित किया है|लेकिन उनके अदभुत गीत,उनकी दृष्टि और प्रेम के अबाध प्रवाह के कारण,न कि उनके नाम पर चलने वाले शिक्षात्मक उपदेशों के कारण आज भी जीवित हैं|उनकी अमर वाणी दिल को छू जाती है|उनकी कविता में रहस्य-भावना की व्यापक अभिव्यक्ति हुयी है|उनकी अक्खड़ तन्मयता,असीम के प्रति अन्यतम लौकिक आवेग और ईश्वर की अत्यंत आत्मीय निजी अनुभूति हिन्दू और मुसलमानी आस्था से प्राप्त घरेलू रूपकों एवं धार्मिक प्रतीकों में व्यक्त हुई है|उन कविताओं के रचयिता के बारे में यह कहना मुश्किल है कि वह ब्राह्मण था या सूफी,वेदांती था या वैष्णव ;क्योंकि उन्होंने खुद अपने बारे में कहा है कि ‘वे एक साथ अल्लाह और राम की संतान हैं|’वह ‘परम सत्ता’ जिसे वे जानते थे और जिसकी आराधना करते थे तथा जिसकी आनंदपूर्ण मैत्री (छवि)दूसरों की आत्मा में देखते थे,अनुभवातीत है| ‘उसमें’ सभी आध्यात्मिक कोटियाँ तथा सारी धार्मिक परिभाषाएं समाहित हैं|फिर भी प्रत्येक व्यक्ति ने उस असीम और अनलंकृत समष्टि को कुछ हद तक उपलब्ध किया है| ‘जो’ उनके मापदंडो के अनुसार अपने आपको धर्ममतों के श्रद्धालु प्रेमियों के लिए प्रकट करता है|
कबीर का जीवन परस्पर विरोधी किंवदंतियों से भरा हुआ है,जिनमें से किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता|इनमें से कुछ हिन्दू स्रोतों और कुछ मुसलमानी स्रोतों से निकली हैं|वे किम्वदंतियां कबीर को कभी सूफी तो कभी ब्राह्मण संत बताती हैं|फिर भी उनका नाम अंतिम रूप से व्यवहारिक रूप में उनके मुसलमान होने का अंतिम प्रमाण है|सर्वाधिक प्रचलित कहानी उन्हें बनारस के मुसलमान बुनकर की असली या गोद ली गई संतान के रूप में प्रस्तुत करती है|बनारस शहर में ही उनके जीवन की प्रमुख घटनाएँ घटित हुईं |
पंद्रहवीं शताब्दी तक बनारस में भक्ति धर्म की समन्वयवादी प्रवृतियां पूरे उत्कर्ष पर थीं|सूफी और ब्राह्मण शास्त्रार्थ करते हुए दिखते हैं|दोनों धर्ममतों के सर्वाधिक धार्मिक लोग रामानंद की शिक्षाओं के निरंतर संपर्क में है |उस समय रामानंद की प्रसिद्धि अपने शिखर पर थी|कबीर में धार्मिक भाव जन्मजात था|बालक कबीर ने रामानंद को भगवान द्वारा नियत गुरु के रूप में देखा|लेकिन एक हिन्दू गुरु एक मुसलमान को शिष्य एक रूप में स्वीकार करेगा,इसके संयोग बहुत कम थे|यह बात उन्हें मालूम भी थी,इसलिए वे गंगा नदी की सीढ़ियों पर छिप गए|रामानंद वहाँ स्नान करने के अभ्यस्त थे|पानी की ओर नीचे आते समय स्वामीजी का कबीर के शरीर से अप्रत्याशित ढंग से स्पर्श हुआ|वे विस्मय से चिल्ला उठे-‘राम!राम!’ रामानंद राम की पूजा भगवान् के अवतार के रूप में करते थे|उसके बाद कबीर ने घोषणा की कि रामानंद के मुंह से उन्हें दीक्षा का मन्त्र मिल गया है और उन्होंने रामानंद का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया है|कट्टरपंथी ब्राह्मण और मुसलमान दोनों समान रूप से कबीर के ईश्वरीय मीमांसा सम्बन्धी काम को अवज्ञा मानते थे|उनके विरोध के बावजूद कबीर अपनी बात पर डंटे रहे|इस तरह उन्होंने क्रिया रूप में नए धर्म (रिलेजियस-सिंथेसिस)के उस सिद्धांत का प्रचार किया,जिसे रामानंद ने अपने चिंतन में स्थापित किया था|रामानंद उनके गुरु के रूप में दिखते हैं,यद्यपि मुसलमानी किम्वदंती झांसी के प्रसिद्द सूफी पीर तकी को उनके जीवन के उत्तरार्ध का उस्ताद मानती है|लेकिन हिन्दू संत ही मानव रूप में उनके गुरु दिखते हैं,जिनके प्रति अपने गीतों में उन्होंने श्रद्धा व्यक्त की है|
कबीर के बारे में हमें जो थोड़ी-सी जानकारी है,वह उस प्राच्य रहस्यवादी से सम्बंधित तत्कालीन बहुत-सी धारणाओं का खंडन करती है|साधना(displine) के वे सोपान जिनसे वे गुजरे,वे तौर-तरीके जिनमें उनकी धार्मिक प्रतिभा विकसित हुई,उनसे हम पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं|वे वर्षों रामानंद के शिष्य रहे |रामानंद अपने समय के सभी महान मुल्लाओं और ब्राह्मणों से ब्रह्म विज्ञानी और दार्शनिक शास्त्रार्थ करते थे|इस आधार पर शायद हम कबीर की हिन्दू और सूफी दर्शन से सम्बन्ध की जानकारी पा सकते हैं|हो सकता है कि हिन्दू या सूफी ध्यान-मनन की परम्परागत शिक्षा उन्हें मिली भी हो और नहीं भी|लेकिन यह स्पष्ट है कि उन्होंने पेशेवर सन्यासी का जीवन ग्रहण नहीं किया था या ध्यानशीलता,तप एवं विशिष्ट खोज में अपने आपको समर्पित करके वे संसार से विरक्त नहीं हुए थे|वे कुशल संगीतज्ञ और कवि थे|उनकी आराधना के अन्तरंग जीवन की कलात्मक अभिव्यक्ति उनके संगीत और कविता में हुई है|वे स्वस्थचित्त और मिहनती स्वाभाव के पूरबिया दस्तकार थे|सभी किम्वदंतियां इस बात पर एकमत हैं कि कबीर बुनकर थे|वे अपनी जीविका करघा से चलाते थे|वे एक निरक्षर आदमी थे|टेंट निर्माता पॉल,मोची बोह्मो,ठठेरे बनियन की तरह वह जानते थे कि विजन और उद्योग का मिलान कैसे किया जाता है|ध्यान के भाव में विघ्न डालने की अपेक्षा उनका हस्तशिल्प इसमें मदद करता था|शरीर मात्र को कष्ट देने वाले तप से उन्हें घृणा थी|वे सन्यासी नहीं एक शादीशुदा आदमी थे|वे एक परिवार के पिता थे|तपोमय जीवन पर जोर देने वाली हिन्दू किम्वदंतिया इस तथ्य की अनदेखी करती हैं|उन्होंने अलौकिक प्रेम के अपने हर्षोन्मत गीतों में जो कुछ गाया,वह सामान्य लोगों की समझ से परे है|उनका कर्म उनके जीवन की परम्परित कथा की पुष्टि करता है|प्रेम और त्याग के अवसरों के लिए घरेलू जीवन की तथा दैनिक अस्तित्व के महत्व और यथार्थ के वे बार-बार प्रशंशा करते हैं|पेशेवर योगी की पवित्रता की अवहेलना करते हुए वे कहते हैं-‘योगी ने लम्बी दाढ़ी बढ़ा रखी है और उसकी जटाएं उलझी हुयी हैं|इस कारण वह बकरे की तरह दीखता है|’वह योगी इससे भी आगे बढ़कर प्रेम,ख़ुशी और सुन्दरता से बने संसार से पलायन कर जाना चाहता है|उस संसार से,जो आदमी की खोज की सबसे उपयुक्त जगह है|उस ‘सत्य’ को नहीं पाया जा सकता है|इस सम्पूर्ण संसार में उसके प्रेम की जोत फैली हुयी है|
वैसे देश-काल में उस निडर और मौलिक मनोवृत्ति की पहचान के लिए संत साहित्य के अधिक ज्ञान की जरुरत नहीं है|हिन्दू या मुसलमान दोनों तरह की कट्टरपंथी पवित्रता के लिहाज से कबीर विशुद्ध विधर्मी थे|सभी सांस्थानिक धर्मो और बाह्याचारो को वे उसी तीव्रता और सम्पूर्णता में नकारते थे,जैसे क्वैकर्स नकारते थे|जहां तक इनके धार्मिक विचारों का सवाल है,उनकी छवि एक खतरनाक आदमी की थी| ‘अलौकिक सत्य’ के साथ ‘सहज समाधि’ का उन्होंने निरंतर गुणगान किया|वह ‘अलौकिक सत्य’ प्रत्येक आत्मा की ख़ुशी और कर्तव्य में है|वह कर्मकांड और शारीरिक तप दोनों से परे है|उनका भगवान् न तो काबा में है,न कैलाश में|जिन्हें उसकी खोज है,उन्हें दूर जाने की जरुरत नहीं|वह हर कहीं है|एक स्वयंसिद्ध पवित्र आदमी की तुलना में ‘एक धोबी और एक बढ़ई’ में उसे ढूँढना अधिक आसान है|इसलिए हिन्दू और मुसलमान दोनों की धर्मपरायणता के सारे उपकरणों-मंदिर और मस्जिद,मूर्ति और पवित्र जल तथा धर्मग्रन्थ और पुजारी-का समान रूप से इस विद्रोही कवि ने खंडन किया|उन्होंने आत्मा और प्रेम के मध्य आने वाली सभी मृत चीजों का तिरस्कार किया है-
सारे बिंब जीवनहीन हैं,
वे बोल नहीं सकते,
मैं जानता हूँ,
उनके लिए मैं बहुत रोया,
पुराण और कुरआन शब्द मात्र हैं,
परदा उठाकर मैंने सब देखा है|
इस तरह की बात किसी संगठित मठ के द्वारा बर्दाश्त नहीं की जा सकती|यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि पुजारी प्रभावित अपने कर्म-क्षेत्र बनारस में कबीर उत्पीडित किये गये हों|एक बहुज्ञात किम्वदंती के अनुसार ब्राह्मणों ने एक सुन्दर गणिका को उनके पास उन्हें लुभाने और परवर्तित करने के लिए भेजा था-मैगाडाले की तरह|उच्च प्रेम के स्रष्टा से उस गणिका का अचानक मिलन इस बात का प्रमाण है कि तत्कालीन धार्मिक शक्तियां कितने भय और अनादर से कबीर को देखती थी|कम से कम एक बार किसी को स्वस्थ कर देने के काल्पनिक चमत्कार की उपलब्धि के बाद उन्हें बादशाह सिकंदर लोदी के पास लाया गया और दैवीय शक्ति के वाहक का दावा करने वाले के रूप में आरोपित किया गया|लेकिन सिकंदर लोदी एक महत्वपूर्ण संस्कृति का राजा था|अपनी निजी आस्था से सम्बंधित मौजी प्रकृति के संत लोगों के प्रति उदार था|जन्मना मुसलमान कबीर ब्राह्मण धर्माधिकारियों के लिए बाहरी और सूफियों के वर्ग के थे,जिन्हें महान ब्रह्मविज्ञानी स्वातंत्र्य प्राप्त था|यद्यपि शांति कायम रखने के लिए उन्हें बनारस से निर्वासित कर दिया गया था,फिर भी वे अपने काम में लगे रहे|यह घटना १४९५ ई. की लगती है,जब वे साठ के करीब थे|उनके जीवन की यह अंतिम घटना है,जिसकी हमें निश्चित जानकारी है|तत्पश्चात वे उत्तर भारत के नगरों में घूमते हुए दिखाई देते हैं|वे नगर उनके शिष्यों के केंद्र-स्थल हैं|प्रेम के प्रचारक और कवि के रूप में उन्होंने अपना निर्वासित जीवन व्यतीत किया|प्रेम,जिसके बारे में अपने एक गीत में वे कहते हैं, ‘काल के प्रारंभ से’ वह नियत है|अब वे बूढ़े और कमजोर हो गये थे|उनके हाथ इतने दुर्बल हो गये थे कि वे अपना प्रिय वाद्य भी नहीं बजा सकते थे|१५१८ में गोरखपुर के नजदीक मगहर में उनकी मृत्यु हो गयी|
एक बहुत खूबसूरत किम्वदंती है कि उनकी मृत्यु के बाद उनके हिन्दू और मुसलमान शिष्यों में उनके शव के स्वामित्व को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ|मुसलमान शिष्य दफनाना चाहते थे तो हिन्दू शिष्य जलाना|वे जब आपस में बहस कर रहे थे,तब कबीर उनके सामने प्रकट हुए और उनसे कहा कि वे कफ़न उठाये और नीचे देखें कि क्या कुछ पडा है|उन्होंने ऐसा ही किया और पाया कि वहाँ फूलों का ढेर है|उसमें से आधा मुसलामानों ने मगहर में दफनाया और आधा हिन्दू बनारस जलाने के लिए ले आये|दो महान धर्मों के सर्वाधिक सुन्दर सिद्धांतो को सुगन्धित बनाने वाले व्यक्ति के कर्मरत जीवन का यह उपसंहार था|
(2)
एक तरह से रहस्यवादी कविता ‘सत्य दर्शन’ के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित की जा सकती है,दूसरी ओर यह भविष्यवाणी का एक रूप है|दो बिन्दुओं को मिलाने वाली रहस्यवादी चेतना की यह विशेष खासियत है|ऊपरी तौर पर यह ईश्वर की आराधना है,लेकिन आंतरिक रूप से पारलौकिक जीवन के रहस्यों की दूसरे लोगों के लिए अभिव्यक्ति है|इसलिए इस चेतना की कलात्मक अभिव्यक्ति दोहरे चरित्र की है|यह प्रेम-कविता है,लेकिन ऐसी प्रेम कविता, जो प्रायः मिशनरी उद्देश्य से लिखी जाती है|
कबीर के गीत हर्षातिरेक और प्रेम से भरे हैं|वे साहित्यिक भाषा में नहीं, लोकप्रिय हिंदी में लिखे गये हैं| जाको पॉल दा तोदी और रिचार्ड रॉल की देसी भाषा में लिखी कविताओं की तरह कबीर ने अपने गीत जानबूझकर जनता को संबोधित करके लिखे|उन्होंने पेशेवर धार्मिक वर्ग को संबोधित करके नहीं लिखा|सामान्य जीवन से लिए गये बिम्बों से वे प्रभावित हैं|वे गीत सार्वदेशिक अनुभवों से भरे हैं|अत्यंत ईमानदार अपील से भरे ये गीत सरलतम रूपकों में हैं|ऐसे आवेग और सम्बन्ध से भरे रूपक,जिन्हें हर कोई जानता है,जैसे दूल्हा-दुल्हन,गुरु-शिष्य,तीर्थयात्री,किसान तथा प्रवासी पक्षी यानी आत्मा (हंसा)|आत्मा और परमात्मा का संयोग अनुभवातीत है|यह हंसा सच्चे और तीव्र विश्वास के साथ हमें घर (ईश्वर के) जाने के लिए प्रेरित करता है|उसकी दुनिया में ‘लोक’ और ‘लोकोत्तर’ के बीच कोई दीवार नहीं है|प्रत्येक वस्तु ईश्वर की लीला है,इसलिए हर वस्तु यहाँ तक कि विनम्रतम प्रार्थना भी सृष्टिकर्ता के मन के रहस्य को व्यक्त करने में सक्षम है|
महानतम रहस्यवादियों की यह सामान्य विशेषता है कि अलौकिक सच्चाइयों को प्रस्तुत करने के लिए वे भौतिक साधनों का प्रयोग करते हैं| जब वे अंततः सच्ची समाधि प्राप्त कर लेते हैं,तब उनके लिए सृष्टि की सारी चीजें समान अधिकार से युक्त हो जाती हैं|समान अधिकार यानी भगवान् की उपस्थति की सांस्कारिक घोषणाएं|घरेलू एवं शारीरिक प्रतीकों का उनका निर्भय नियोजन तथा प्रायः आश्चर्यजनक और अनभ्यस्त स्वाद के प्रति विद्रोह भी उनके आध्यात्मिक जीवन के आनंदातिरेक के प्रत्यक्ष हिस्से हैं|महान सूफियों और जाको पॉल दा तोदी,रुजब्रोक,बोह्मो जैसे ईसाइओं के साहित्य इस तरह के चित्रों से भरे हुए हैं|इसलिए हमें कबीर के गीतों में उनकी भाव समाधि की अभिव्यक्ति के दुःसाहसी प्रयास को देखकर आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए|ठोस एवं आध्यात्मिक भाषा के निरंतर सान्निध्य के जरिए वे दूसरों को भी इस अनुभव के लिए राजी करते हैं|इस एकांतरण के लिए स्वाभाविक तौर पर मन को बदलना जरुरी है,जिससे आदमी काम लेता है|मन में ही पुराने बोध जड़ जमाए हुए हैं|इसे हम ठीक से समझने का प्रयास करें तो उनकी कविता हमारी समझ से दूर नहीं होगी| कबीर सर्वोच्च रहस्यवादियों के उस छोटे से समूह में परिगणित हैं जिनमें संत अगस्थिन,रुजब्रोक और सूफी शायर जलालुद्दीन रूमी आदि प्रमुख हैं|उन्होंने वह उपलब्ध किया है,जिसे ईश्वर का संश्लिष्ट विजन कहा जा सकता है|उन्होंने ईश्वर की वैयक्तिक और अवैयक्तिक,अनुभवातीत और अन्तस्थ,स्थिर और गतिशील अवधारणाओं तथा दर्शन की ‘परम सत्ता’ एवं भक्ति धर्म के ‘सच्चे मित्र’ के मध्य निरंतर विरोध देखा है|एक के बाद दूसरी असंगत अवधारणाओं को स्पष्टतया अपनाकर उन्होंने यह नहीं किया है,बल्कि एक आध्यात्मिक लोक,जिसके वे वासी हैं,की उच्चता का आरोहण करके ऐसा किया है|रुजब्रोक ने जैसा कहा है-एक सत्ता में मिलना और समाहित होना,पूर्ण समग्रता के विरोधों को आत्मसात करते हुए महसूस करना है|यह काम दोनों के लिए अपरिहार्य है|कबीर और रुजब्रोक इसके प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं|उनके अनुसार सृष्टि के तीन क्रम हैं-‘जो हो रहा है’, ‘जो है’ और-उनसे ‘अधिक जो होने वाला है’|यही तीनों क्रम ईश्वर हैं|भगवान् जो अनुभूत होता है,वह कोई अंतिम कल्पना नहीं,बल्कि एक वास्तविकता है|वह प्रेरित करता है,वह सहारा देता है और वह सचमुच में है|अस्तित्व ग्रहण करता हुआ ससीम संसार और अस्तित्वमान असीम संसार दोनों अपनी वास्तविकताओं के बावजूद अनुभवातीत हैं|वह सर्वव्यापी परम सत्य’ है,जिसमे ‘सबकुछ व्याप्त’ है|उसमें दुनिया माया की तरह है|उनकी व्यक्तिगत अवधारणा में ‘वह’ प्रियतम है जो प्रत्येक आत्मा को शिक्षित करने वाला और जोडने वाला साथी है|अन्तर्यामी शक्ति के रूप में मान्य वह ‘योगियों का योगी’ है|लेकिन ये सभी उसकी प्रकृति के श्रेष्ठ आंशिक रूप हैं,जो परस्पर दोष निवारक हैं| त्रिक के ईसाई सिद्धांतों से यह ब्रह्म विज्ञानी रेखालेख(डायग्राम) अदभुत सादृश्य रखता है|ईसाई सिद्धान्त के ये लोग ‘शाश्वत एकता’ के ऐसे भिन्न और पूर्ण अनुभवों के रूप में व्यक्त करते हैं,जिसमें वे समाहित हैं|जैसे रूजब्रोक यथार्थ का एक धरातल देखता है, जिस पर हम पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा’ के बारे में अधिक कुछ नहीं कह सकते हैं | हम अधिक से अधिक उस ‘एक अस्तित्व’ को अनुभव करते हैं | उन अमर लोगों का सार यह है कि वह एक अस्तित्व है | इसलिए कबीर कहते हैं कि असीम और ससीम दोनों के परे शुद्ध यथार्थ ‘वही’ है |
ब्रह्म एक अनिर्वचनीय तथ्य है, जिसकी तुलना ‘प्रतिअनुकूलित अनुकूलित भिन्नता से की गई है | वह मात्र एक शब्द है |’ एक नज़र में वह पूर्ण अनुभवातीत एवं भाववादी दर्शन है | वह हमारी आत्मा का प्रेमी है | वह सबके प्रति समान और प्रत्येक के प्रति विशेष है, जैसा कि एक ईसाई रहस्यवादी के लिए होता है | यथार्थ वर्णन के लिए इन दोनों रास्तों की आवश्यकता का कबीर द्वारा महसूस किया जाना उनके आध्यात्मिक अनुभव की समृद्धि और संतुलन का प्रमाण है, जिसे न तो दैवीय और न मानवतारोपी प्रतीक अकेले व्यक्त कर सकते हैं | अतः ब्रह्म दर्शन की सभी अवधारणाओं और सभी भावपूर्ण अंतर्ज्ञानों से युक्त हो जाने पर वह पूर्ण से अधिक पूर्ण और मानव मस्तिष्क से अधिक अपना है | वह एक महान शब्द का केंद्र, जीवन और प्रेम का माध्यम तथा इच्छा की अद्भुत तुष्टि है | उसका रचनात्मक शब्द ‘ओम’ या ‘अनंत हाँ’ है |
दैवीय प्रकृति से निकलने वाले नकारात्मक दर्शन के सारे गुण ईश्वर को उस रूप में वर्णित करते हैं जो वह नहीं है | वे उसे ‘रिक्तता’ के स्तर तक घटा देते हैं | यह बात इस महान कवि के लिए घृणित वस्तु है | कबीर कहते हैं – “ब्रह्म निराकार में कभी नहीं पाया जा सकता |” उसके प्रेम की ज्योति संसार में व्याप्त है | उसकी पूर्णता को सिर्फ प्रेम की आँखों से देखा जा सकता है | उसे जानने वाले इसी रूप में उससे तादात्म्य स्थापित करते हैं, यद्यपि वे उसे व्यक्त नहीं करते | वह आनंदपूर्ण एवं अनिर्वचनीय रहस्य है |
कबीर दैवीय प्रकृति की निजी और ब्रह्मांडीय अवधारणा के बीच संश्लेषण करके उन तीन खतरों से बच निकलते हैं, जो रहस्यात्मक धर्म के लिए अहितकर हैं |
प्रथम, वे अतिशय भावुकता से बचते हैं | भावुकता एक विशेष मानवतारोपी समर्पण की प्रवृत्ति है, जो दैवीय व्यक्तित्व के अनियंत्रित रूप का परिणाम है – विशेष रूप से अवतारी रूप के अंतर्गत, जो भारतवर्ष में कृष्ण आराधना की अतिशयोक्ति में तथा यूरोप में कुछ विशेष ईसाई संतों की भावुकतापूर्ण उच्छृंखलताओं में दिखता है |
दूसरे, वे शुद्ध अद्वैत के आत्महंता निष्कर्षों से बचते हैं | यद्यपि आत्यंतिक रूप से तार्किक अद्वैत का आशय एकता पर बल देता है | यह आत्मा और परमात्मा के बीच एकता का तत्व है | आध्यात्मिक जीवन के उद्देश्य के रूप में एक पूर्ण अद्वैतवादी के लिए आत्मा सत्य है और तत्वतः ईश्वर से अभिन्न है | मनुष्य का सच्चा ध्येय अव्यक्त पहचान का प्रत्यक्षीकरण है | वह प्रत्यक्षीकरण ही अद्वैतवादी सिद्धांत सूत्र की अभिव्यक्त अनुभूति है | उस अनुभूति की कला ही ईश्वर है | लेकिन कबीर कहते हैं – ब्रह्म और जीव “सदा पृथक हैं और अंततोगत्वा सदा संयुक्त हैं |” आदमी के लिए आध्यात्मिक और साथ ही साथ भौतिक जगत की पहचान ईश्वर की पाद पीठ से अधिक नहीं है | ईश्वर के साथ आत्मा का संयोग प्रेम का संयोग है | दोनों का परस्पर निवास आवश्यक है | द्वैत सम्बन्ध जिसे सभी रहस्यात्मक धर्म व्यक्त करते हैं, ऐसा आत्मविसर्जन नहीं, जिसमें व्यक्तित्व के लिए कोई स्थान नहीं हो | शाश्वत पृथकता तथा ईश्वर और आत्मा के पृथकत्व में रहस्यात्मक मेल संतुलित रहस्यवाद का आवश्यक सिद्धांत है | जो आस्था इस पृथकता और संयोग के रहस्य को नहीं मानती, वह आत्मा के आध्यात्मिक संसार में विलय का अंश मात्र भी नहीं व्यक्त कर सकती | इसका अभिकथन (समर्थन) रामानुज द्वारा उपदेशित वैष्णवी सुधार का विशिष्ट गुण है, जिसकी नीतियाँ रामानंद के जरिए कबीर तक पहुँचीं | अंतिम, प्रेम की सर्वोच्च सत्ता के रूप में ईश्वर का प्रत्यक्ष एवं उष्मित मानवीय बोध तथा आत्मा के साथी, शिक्षक और दूलहा के रूप में उसका बोध कबीर की कविता में आवेगपूर्ण ढंग से निरंतर अभिव्यक्त हुआ है | ये भाववादी प्रवृत्तियाँ उनकी यथार्थ दृष्टि के आध्यात्मिक पक्ष का जन्मजात गुण है, जो उसे बौद्धिक सूत्र की निष्प्राण पूजा में विकृत होने से रोकती हैं | निष्प्राण पूजा वेदांती स्कूल का अभिशाप हो गई थी | निरी बौद्धिकता और निरी भक्तिमूलकता का वे कम समर्थन करते हैं | प्रेम उनका ‘एकमात्र पूर्ण स्वामी’ है | वह अधिक स्वच्छंद जीवन का अद्भुत स्रोत है, जिसका वे आनंद लेते हैं | वह असीम और ससीम संसार को मिलाने का सामान्य कारक तत्व है | सबकुछ उसके प्रेम में सराबोर है | प्रेम जिसका वर्णन जोहानिन की भाषा में प्रायः ईश्वर के रूप में किया गया है | सारी सृष्टि शाश्वत प्रेमी की लीला है | जीवित होना, परिवर्तित होना तथा विकसित होना सब ब्रह्म के प्रेम और आनंद की अभिव्यक्ति है | मानव जीवन की उत्पत्ति को ये दोनों (प्रेम और आनंद) आवेग संचालित करते हैं, इसलिए सुख और दुःख के कुहासे के परे, कबीर उन्हें (प्रेम और आनंद को) ईश्वर की रचनात्मक क्रीड़ा को संचालित करते हुए पाते हैं | प्रेम ही उसका प्रकट रूप है, आनंद उसकी अभिव्यक्ति है | स्वीकार की प्रसन्न क्रीड़ा- अनंत हाँ (ओम)- से सृष्टि बनती है, वह दैवीय प्रकृति के गर्भ में निरंतर प्रकाशित है| यह बात हिन्दू धार्मिक विचारों के सामान्य कोष से गृहीत बहुत से अभिप्रायों में से एक है, जो उनकी कवि प्रतिभा से ज्योतित हुई है | स्पंदन, लय और निरंतर परिवर्तन कबीर के यथार्थ बोध के अभिन्न अंग हैं | यद्यपि अनंत और पूर्ण उनकी चेतना में बने रहते हैं, फिर भी ईश्वरीय प्रकृति की उनकी अवधारणा निश्चित रूप से गतिशील है | गति के ही प्रतीकों के जरिए, वे हम तक ‘उसे’ संप्रेषित करने की प्रायः कोशिश करते हैं, जैसे नृत्य के अपने सुस्थिर सन्दर्भ में या प्रेम के रज्जू से झूलने वाले सृष्टि के शाश्वत झूले के विलक्षण आधुनिक चित्र के रूप में |
यह रहस्यात्मक साहित्य का चिह्नित किया जाने वाला गुण है कि महान धर्म संघ अतीन्द्रिय भाईचारे की अपनी प्रकृति को संप्रेषित करने के अपने प्रयास में अनिवार्यतः ऐसे ऐन्द्रिय बिम्बों को रचते हैं, जो अश्लील और गलत भी होते हैं | हमारी सामान्य मानवीय चेतना इस तरह स्वातंत्र्य प्रेमी है कि अंतर्ज्ञान का फल अपने आप सहज ज्ञान से उन बिम्बों से संदर्भित हो जाता है | अंतर्ज्ञान में रहस्यवादियों को सभी धुंधली लालसाओं और आंशिक इन्द्रिय आकांक्षाओं की पूर्ण परिपूर्ति होती लगती है | तब वे अटल घोषणा करते हैं कि वे अविद्यमान ज्योति के दर्शन करते हैं, वे दिव्य संगीत का श्रवण करते हैं, वे प्रभु के माधुर्य का आनंद लेते हैं, वे अनिर्वचनीय सुवास को जानते हैं और वे प्रेम के संयोग को महसूस करते हैं | वस्तुतः ‘उसके’ दर्शन करना और ‘उसे’ पूरी तरह महसूस करना, ‘उसका’ आध्यात्मिक श्रवण, ‘उसकी’ प्रीतिकर सुरभि और प्यास बुझाने वाली घूँट नौरविच के जुलियन सी है, जिनकी मनोसंवेदी स्वचलतायें तीक्ष्ण हैं, वे इन्द्रिय और आत्मा की बराबरी को अपनी चेतना में भ्रमों के रूप में महसूस करते हैं | ‘वह’ सुसो द्वारा देखी गई ज्योति की तरह, राल द्वारा सुने गए दिव्य संगीत की तरह, सेना सेल के सेंट कैथरीन ने जिसे आत्मसात किया, उस दिव्य सुरभि की तरह तथा सेंट फ्रांसिस एवं सेंट टेरेसा द्वारा अनुभूत शारीरिक घाव की तरह है | प्रतीकवाद की ये अतिनाटकीयताएँ हैं, जिसके अंतर्गत रहस्यवादी सतह की चेतना के प्रति सहज ज्ञान से अपने आध्यात्मिक अंतर्ज्ञान को प्रस्तुत करने के लिए अभिमुख होता है | वह विशेष ज्ञान, जिसका वे (कबीर) अनुभव करते हैं, अधिक व्यंजक यथार्थ है, जो समन्वय के रूप में व्यक्त होता है |
कबीर से जैसी उम्मीद की जा सकती है-उनकी आध्यात्मिक कोटि की प्रतिक्रिया अनुभूतिजन्य प्रतीकों के कारण बहुत व्यापक और विभिन्नता युक्त है|वे कहते हैं कि उन्होंने ब्रह्म की दीप्ति बिना दृश्य के देखी है,ब्रह्म की शाश्वत सुधा चखी है,परम के साथ आह्लाद से भरे संयोग का अनुभव किया है और स्वर्गिक फूलों के सुवास को सूंघा है|लेकिन वे आत्यंतिक रूप से एक कवि और संगीतज्ञ थे |लय और संगीत उनके पोशाक की शोभा और सच्चाई थे|इसलिए रिचर्ड रॉल की तरह अपने गीतों में वे अपने आपको व्यक्त करते हैं|वे सबसे पहले एक सांगीतिक रहस्यवादी थे|वे बार-बार कहते हैं कि सृष्टि संगीत (अनहदनाद) से भरी हुयी है,यह संगीतमय है|सृष्टि के ह्रदय पर ‘उज्ज्वल संगीत बज रहा है|’प्रेम राग बुनता है जबकि सन्यास काल को मारता है|इसे घर और स्वर्ग कहीं भी सुना जा सकता है|इसे सामान्य जन वैसे ही कानों से सुन सकता है,जैसे एक तपोनिष्ठ सन्यासी अपनी अनुभूतियों से|इसके अतिरिक्त प्रत्येक मनुष्य का शरीर एक वीणा है,जिसे ब्रह्म बजाता है|ब्रह्म हर तरह के संगीत का स्रोत है|हर जगह कबीर असीम के संगीत को सुनते हैं|वैसा दिव्य संगीत,जिसे देवदूत सेंट फ्रांसिस के लिए बजाते हैं तथा वैसी आध्यात्मिक सिम्फनी जो रॉल की आत्मा को उल्लसित आनंद से भर देती है|एक चित्र जिसे उन्होंने हिन्दू देवकुल से लिया है और जिसका वे निरंतर प्रयोग करते हैं,वे अमर बांसुरी वादक कृष्ण हैं|लयात्मक स्पंदन ब्रह्म के सम्मुख सृष्टि का रहस्यमय नृत्य है,जो एक ही साथ पूजा की क्रिया और सर्वव्यापी ईश्वर के असीम हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति है|इस लयात्मक स्पंदन के दृश्यात्मक मूर्तमान रूप में कबीर दिव्य संगीत(अनहद नाद) सुनते हैं|
सृष्टि के इस व्यापक और हर्षमिश्रित विज़न के बावजूद कबीर दैनिक अस्तित्व और सामान्य जीवन को कभी नहीं भूलते | उनके पाँव दृढ़तापूर्वक धरती पर जमे हैं | उनका अक्खड़ और आवेगमय बोध संतुलित और तेजस्वी बुद्धि से निरंतर नियंत्रित है | यह नियंत्रण ऐसे सतर्क कॉमन सेंस के द्वारा संभव होता है, जो प्रायः वास्तविक रहस्यात्मक प्रतिभा में पैदा होता है | सादगी और डायरेक्टनेस का निरंतर आग्रह, हर तरह की अमूर्तता, दार्शनिकता तथा बाह्याचार की निष्ठुर आलोचना उनकी चिह्नित की जाने वाली विशेषताएँ हैं | सभी तरह के प्रत्यक्षीकरण का मूल उद्गम ईश्वर है, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही रूपों में सामान है | ईश्वर आदमी की एकमात्र आवश्यकता है – “जब तुम मूल में जाओगे सारी खुशियाँ तुम्हारी होंगी |” अतः वे अपनी आँख ‘एकमात्र आवश्यकता’ पर रखते हैं | उनके लिए संप्रदाय, धर्ममत, धार्मिक समारोह, दर्शन के निचोड़ तथा संन्यास के अनुशासन तुलनात्मक रूप से व्यर्थ की बातें हैं | कबीर ऐसा भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, जिससे आत्मा ब्रह्म से सहज संयोग कर सकती है | यही आत्मा का ध्येय है | ब्रह्म के साथ आत्मा का सहवास ही इसकी उपलब्धि है | इसलिए कबीर की यह कट्टर उदारता है कि कभी वे वेदांती लगते हैं और कभी वैष्णव, कभी सर्वेश्वरवादी हैं तो कभी अनुभवातीतवादी और कभी ब्राह्मण हैं तो कभी सूफ़ी | ब्रह्म उनके जीवन का नियंता है | वह अतिविस्तृत है और एकदम पास भी | उस अनिर्वचनीय भावबोध के बारे में सत्य कहने के प्रयास में वे उस गुत्थी को एकसाथ समझ लेते हैं, जैसे वे अपने करघे पर परस्पर विरोधी धागों को बुनते हैं | वह करघा जो उनके सर्वाधिक उग्र और परस्पर विरोधी दर्शनों और आस्थाओं से निकले प्रतीकों और विचारों का प्रतिरूप है | सभी आस्थाएँ एवं दर्शन ‘उसे’ समझने में सहायक हैं | उपनिषद ने ‘उसे’ सूर्य-सा ज्योतित बतलाया है | वह अंधकार से परे है | उज्ज्वल प्रकाश की प्रचुरता को दर्शाने के लिए सभी रंगों के वर्णक्रम को देखना जरूरी है | इस तरह अपने इस्तेमाल के लिए वे पारंपरिक तरीकों को अनुकूल बनाते हुए रहस्यवादियों में सामान्य रूप में प्रचलित एक तरीके का अनुसरण करते हैं | वे रूप की मौलिकता के लिए किसी तरह का विशेष प्रेम विरले ही प्रदर्शित करते हैं | वे अपनी शराब प्रायः उसी बर्तन में रखते हैं जो हाथ में आता हो | वे आमतौर पर उन्हें प्राथमिकता देते हैं, जो सौंदर्य तथा अर्थवत्ता के धरातल को उन्नत करते हैं तथा जो अपने समय के प्रचलित धार्मिक या दार्शनिक सूत्र हैं | इस तरह हम पाते हैं कि कबीर की कुछ श्रेष्ठतम कविताएँ विषयवस्तु के रूप में हिन्दू दर्शन और धर्म की घिसी-पीटी बातों की है, जैसे - ईश्वर की लीला, परमानन्द का सागर, आत्मा का पक्षी (हंसा), माया, सहस्रदल कमल और रूपहीन रूप | फिर बहुत सी कविताएँ सूफी बिम्बों और भावों से सराबोर हैं | दूसरी विशेषता है उनकी रचना में भारतीय जीवन की सामान्य परिस्थितियों और प्रसंग, जैसे मंदिर की घंटियाँ, दीपक का समारोह, विवाह , सती और मौसम की विशेषताएँ | उनके द्वारा अनुभूत सारी चीजें अपने रहस्यात्मक रूप में ब्रह्म से आत्मा के सम्बन्ध की प्रतीक-सी हैं | इनमे से कई में विशेष रूप से सुन्दर और भारतीय भाव प्रकृति के प्रति प्रकट हुए हैं |
यहाँ अनूदित गीतों के संग्रह में ऐसे उदाहरण मिलेंगे जो कबीर के चिंतन के करीब सभी पक्षों को उद्घाटित करते हैं | सभी पक्ष यानी एक रहस्यवादी के मनोभाव के सभी उतार-चढ़ाव, जैसे समाधि, निराशा, नीरव परमानन्द, उग्र आत्मसमर्पण, विस्तृत ज्योति की चमक और आत्म विभोर प्रेम के क्षण | संसार का उनका व्यापक और गहरा ज्ञान, सृष्टि का शाश्वत खेल, ईश्वर के अस्तित्व में संसार का ‘मनकों की तरह होना’ यहाँ दिखता है | शाश्वत प्रेमी के साथ आत्मीय घनिष्ठता के उनके प्यारे और सुकुमार भाव तथा सबके ऊपर उनकी सुन्दर कविता भी यहाँ है | सत्ता के ये स्पष्ट विरोधाभासी विचार ब्रह्म में नियोजित हैं, इसलिए दूसरे सभी प्रतिमुख- दासता और मुक्ति, प्रेम और त्याग तथा आनंद और पीड़ा- ब्रह्म में मिल जाते हैं | ब्रह्म के साथ संयोग आत्मा के लिए महत्वपूर्ण है | यदि हम उसे अपनावें तो उसकी आवश्यकता, संयोग और ईश्वर की खोज सब कुछ सरल और अत्यंत स्वाभाविक है | संयोग प्रेम से उत्पन्न होता है- ज्ञान या औपचारिक रीति-रिवाजों से नहीं | और ज्ञान से संयोग होता है | वह अकथनीय है | वह ‘न तो यह है, न वह’, जैसा रुजब्रोक कहता है | वास्तविक पूजा और सहभागिता ‘आत्मा’ में और सत्य में है, इसलिए मूर्तिपूजा ‘शाश्वत प्रेमी’ का अपमान है | दिखावटी (प्रोफेशनल) पवित्रता के साधन व्यर्थ हैं | आत्मा की उदारता और शुद्धता से अलग कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं | सभी चीजों में और विशेष रूप से मनुष्य के ह्रदय में ब्रह्म निवास करता है, सबकुछ ब्रह्म आविष्ट है | ‘वह’ कहीं भी पाया जा सकता है- सामान्य मानवीय एवं दैहिक अस्तित्व में भी तथा भौतिक जीवन और पंक में भी | हम बिना पथ पार किए ध्येय तक पहुँच सकते हैं | घर आदमी की साधना की सबसे उपयुक्त जगह है, मठ नहीं | और यदि वह वहां ईश्वर को नहीं पाता है तो उसे बाहर आशा नहीं करनी चाहिए | ‘घर सच्चाई है |’ वहाँ प्रेम और विमुखता, दासता और स्वतंत्रता तथा ख़ुशी और दुःख आत्मा के ऊपर बारी-बारी से खेलते हैं ; और यह उनका द्वंद्व है जो असीम आनंद के अनहद संगीत से उपजता है | कबीर कहते है- “ब्रह्म के सिवा इस लय को कोई दूसरा नहीं उत्पन्न कर सकता |”
(3)
कबीर के गीतों का यह अनुवाद मुख्य रूप से रवीन्द्रनाथ टैगोर ने किया है | कबीर की रहस्यात्मक प्रतिभा की प्रवृत्ति उनमें भी मिलती है | वे सभी, जो इन कविताओं को देखेंगे, टैगोर को कबीर की दृष्टि और विचार का विशेष सहृदय व्याख्याकार पाएँगे | यह संग्रह मुद्रित हिंदी टेक्स्ट के साथ श्री क्षितिमोहन सेन के बांगला अनुवाद पर आधारित है, जिन्होंने कबीर की कविताओं को विभिन्न स्रोतों से इकट्ठा किया है | उन्होंने कभी पुस्तकों और पाण्डुलिपियों से, कभी घुमंतू साधुओं और गायकों के मुख से गाए जाने वाले भजनों और कविताओं के विशाल संग्रह से, जिनसे कबीर का नाम जोड़ दिया गया है, अपना संग्रह तैयार किया है | उन्होंने प्रामाणिक गीतों को सावधानीपूर्वक, कबीर के नाम पर प्रचलित अप्रामाणिक साहित्य से, अलग किया है | उनके उन श्रम साध्य कार्यों से ही यह वर्तमान दायित्व संभव हो पाया है |
श्री क्षितिमोहन सेन के टेक्स्ट से पहले हमने श्री अजीत कुमार चक्रवर्ती द्वारा ११६ गीतों के अंग्रेजी अनुवाद की पांडुलिपि का भी अवलोकन किया है | उसमें कबीर पर लिखा उनका एक निबंध भी है | उससे हमने काफी मदद ली है | अनुवाद से यथेष्ट पाठ यहाँ हमने लिए हैं | निबंध में उल्लिखित बहुत से तथ्यों को इस परिचय में मिला लिया गया है | श्री अजीत कुमार चक्रवर्ती अत्यंत उदार और निःस्वार्थ स्वभाव के व्यक्ति हैं | हमारे काम के लिए उन्होंने अपनी पांडुलिपि हमें सौंप दी | वे कृतज्ञता से भरे हमारे धन्यवाद के पात्र हैं | (1999)
( मेरी आलोचना पुस्तक “साहित्य से संवाद” में यह अनुवाद शामिल है | )
ऐवलिन अंडरहिल(१८७५-१९४१)इंगलैंड निवासी थीं|वे अंग्रेजी की लेखिका और कवयित्री थीं|लेकिन उन्हें विशेष प्रसिद्धि रहस्यवाद की विशेषज्ञ के रूप में मिली|यूरोपीय रहस्यवाद की तो वे अधिकारी विदुषी मानी जाती हैं|अपने समकालीन बौद्धिकों के बीच रहस्यात्मक ब्रह्म विज्ञान को एक प्रतिष्ठित अनुशासन बनाने में उन्होंने ऐतिहासिक भूमिका निभाई|कविता संग्रहों के अतिरिक्त उनकी प्रसिद्द पुस्तकें हैं-मिस्टिसिज्म’,दि मिस्टिक वे’, ‘वरशिप’, ‘मैन एंड दि सुपरनेचुरल’, ‘दि मिस्ट्री ऑफ़ सेक्रिफायस’ आदि|मिस्टिसिज्म (१९११) उनकी सर्वाधिक चर्चित और विश्वप्रसिद्ध पुस्तक है|
‘पोएम्स ऑफ़ कबीर’ में प्रायः वे कवितायें हैं,जिनका सम्बन्ध कबीर की रहस्य-भावना से है|विषय की मांग और रहस्यवाद में अपनी विशेष दिलचस्पी के कारण अंडरहिल ने कबीर की रहस्य-भावना के गहन विवेचन के साथ उसकी बहुत-सी ऐसी विशेषताएं खोज निकाली हैं,जिनको हिंदी आलचकों ने प्रायः नहीं देखा है|सामाजिक संदर्भो से जुड़ी कबीर की कविताओं की बड़ी चर्चा होती है|लेकिन सामाजिकता के आग्रही आलोचकों के लिए भी कबीर की रहस्य-भावना का कोई सुसंगत सामाजिक आधार खोजना प्रायः मुश्किल होता है|बहुत-से लोगों का आज भी यह विचार है कि रवींद्रनाथ और अंडरहिल ने ‘पोएम्स ऑफ़ कबीर’ के जरिए कबीर की रहस्यवादी मूर्ति गढ़ने की कोशिश की|अंडरहिल का प्रस्तुत लेख इस दृष्टि से ऐतिहासिक महत्व का है कि इसमें संभवतः पहली बार कबीर के रहस्यवाद के सामाजिक सन्दर्भों को बहुत हद तक समझने की कोशिश दिखाई पड़ती है|कबीर के रहस्यवाद के इस विश्लेषण से हिंदी के विद्वान तो परिचित हैं,लेकिन पुस्तक की अनुपलब्धता के कारण अब आम पाठकों के लिए यह आसानी से सुलभ नहीं है|प्रस्तुत अनुवाद का उद्देश्य कबीर की छः सौवीं जयंती के अवसर पर कबीर सम्बन्धी इस दुर्लभ चर्चा की याद को ताजा करना है|
रहस्य-भावना प्रत्यक्ष सच्चाई नहीं,बल्कि व्यक्तिगत भाव और अनुभूति है |व्यक्तिगत भाव और अनुभूति भी सामान्य स्तर की नहीं,विशेष स्तर की|कबीर की गहन रहस्य-भावना का रहस्यवाद की एक विदुषी लेखिका द्वारा अंगरेजी भाषा में किया गया यह गहन अध्ययन अपने अनुवाद कार्य के लिए जिस गहन धैर्य,योग्यता और सहानुभूति की मांग करता है,वह मुझमें नहीं है|फिर भी कबीर के प्रति प्रेम के कारण इस कार्य को पूरा करना पड़ा|कबीर की साधना और उनके प्रतीकों को समझना जितना कठिन है उतना ही कठिन है किसी विदेशी व्यक्ति द्वारा किये गए अध्ययन को हिंदी पाठकों के लायक बनाना|श्रीमती अंडरहिल ने यह भूमिका यूरोप के पाठकों को ध्यान में रखकर लिखी थी|उन्होंने सूफी और ईसाई रहस्यवादियों से तुलना करते हुए कबीर की जो व्याख्या की है,उसे निर्विवाद नहीं कहा जा सकता|जिस देश-काल के वे उपज थे,उससे भिन्न देश-काल और भाषा में किया गया अध्ययन निर्विवाद हो भी नहीं सकता|अंडरहिल ने रहस्य-भावना की व्याख्या के लिए अंगरेजी भाषा में जिस संश्लिष्ट शैली का प्रयोग किया है,वह हिंदी भाषा के प्रकृति के मेल में नहीं|अनुवाद में मूल वाक्य को बार-बार तोडना पड़ा है|कुछ शब्द अंगरेजी में जो अर्थ देते हैं,हिंदी में वह अर्थ नहीं होता|इन सारी कठिनाइयों के साथ यह अनुवाद कार्य किया|कहीं-कहीं मूल शब्द को कोष्ठक में रख दिया गया है|कुछ जगह अधिक स्पष्टता के लिए कोष्ठक में अपनी ओर से हिंदी शब्द दे दिए गए है1)- अनुवादक
कबीर एक महान धार्मिक सुधारक और एक पंथ के संस्थापक थे,जिससे लाखों उत्तर भारतीय हिन्दू आज भी जुड़े हैं|कबीर अब भी एक गहरे रहस्यवादी कवि के रूप में हमारे सामने हैं| ‘सत्य’ को अभिव्यक्त करने वाले,धार्मिक एकान्तवाद से घृणा करने वाले और मनुष्य को भगवान् की संतान मानकर उसे समता की प्रतीति कराने वाले इस व्यक्ति की नियति यह है कि जिन बंधनों को तोड़ने का उन्होंने जीवन-भर कठोर यत्न किया,उन्हीं बंधनों में उन्हें बांधकर उनके अनुयायियों ने उन्हें सम्मानित किया है|लेकिन उनके अदभुत गीत,उनकी दृष्टि और प्रेम के अबाध प्रवाह के कारण,न कि उनके नाम पर चलने वाले शिक्षात्मक उपदेशों के कारण आज भी जीवित हैं|उनकी अमर वाणी दिल को छू जाती है|उनकी कविता में रहस्य-भावना की व्यापक अभिव्यक्ति हुयी है|उनकी अक्खड़ तन्मयता,असीम के प्रति अन्यतम लौकिक आवेग और ईश्वर की अत्यंत आत्मीय निजी अनुभूति हिन्दू और मुसलमानी आस्था से प्राप्त घरेलू रूपकों एवं धार्मिक प्रतीकों में व्यक्त हुई है|उन कविताओं के रचयिता के बारे में यह कहना मुश्किल है कि वह ब्राह्मण था या सूफी,वेदांती था या वैष्णव ;क्योंकि उन्होंने खुद अपने बारे में कहा है कि ‘वे एक साथ अल्लाह और राम की संतान हैं|’वह ‘परम सत्ता’ जिसे वे जानते थे और जिसकी आराधना करते थे तथा जिसकी आनंदपूर्ण मैत्री (छवि)दूसरों की आत्मा में देखते थे,अनुभवातीत है| ‘उसमें’ सभी आध्यात्मिक कोटियाँ तथा सारी धार्मिक परिभाषाएं समाहित हैं|फिर भी प्रत्येक व्यक्ति ने उस असीम और अनलंकृत समष्टि को कुछ हद तक उपलब्ध किया है| ‘जो’ उनके मापदंडो के अनुसार अपने आपको धर्ममतों के श्रद्धालु प्रेमियों के लिए प्रकट करता है|
कबीर का जीवन परस्पर विरोधी किंवदंतियों से भरा हुआ है,जिनमें से किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता|इनमें से कुछ हिन्दू स्रोतों और कुछ मुसलमानी स्रोतों से निकली हैं|वे किम्वदंतियां कबीर को कभी सूफी तो कभी ब्राह्मण संत बताती हैं|फिर भी उनका नाम अंतिम रूप से व्यवहारिक रूप में उनके मुसलमान होने का अंतिम प्रमाण है|सर्वाधिक प्रचलित कहानी उन्हें बनारस के मुसलमान बुनकर की असली या गोद ली गई संतान के रूप में प्रस्तुत करती है|बनारस शहर में ही उनके जीवन की प्रमुख घटनाएँ घटित हुईं |
पंद्रहवीं शताब्दी तक बनारस में भक्ति धर्म की समन्वयवादी प्रवृतियां पूरे उत्कर्ष पर थीं|सूफी और ब्राह्मण शास्त्रार्थ करते हुए दिखते हैं|दोनों धर्ममतों के सर्वाधिक धार्मिक लोग रामानंद की शिक्षाओं के निरंतर संपर्क में है |उस समय रामानंद की प्रसिद्धि अपने शिखर पर थी|कबीर में धार्मिक भाव जन्मजात था|बालक कबीर ने रामानंद को भगवान द्वारा नियत गुरु के रूप में देखा|लेकिन एक हिन्दू गुरु एक मुसलमान को शिष्य एक रूप में स्वीकार करेगा,इसके संयोग बहुत कम थे|यह बात उन्हें मालूम भी थी,इसलिए वे गंगा नदी की सीढ़ियों पर छिप गए|रामानंद वहाँ स्नान करने के अभ्यस्त थे|पानी की ओर नीचे आते समय स्वामीजी का कबीर के शरीर से अप्रत्याशित ढंग से स्पर्श हुआ|वे विस्मय से चिल्ला उठे-‘राम!राम!’ रामानंद राम की पूजा भगवान् के अवतार के रूप में करते थे|उसके बाद कबीर ने घोषणा की कि रामानंद के मुंह से उन्हें दीक्षा का मन्त्र मिल गया है और उन्होंने रामानंद का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया है|कट्टरपंथी ब्राह्मण और मुसलमान दोनों समान रूप से कबीर के ईश्वरीय मीमांसा सम्बन्धी काम को अवज्ञा मानते थे|उनके विरोध के बावजूद कबीर अपनी बात पर डंटे रहे|इस तरह उन्होंने क्रिया रूप में नए धर्म (रिलेजियस-सिंथेसिस)के उस सिद्धांत का प्रचार किया,जिसे रामानंद ने अपने चिंतन में स्थापित किया था|रामानंद उनके गुरु के रूप में दिखते हैं,यद्यपि मुसलमानी किम्वदंती झांसी के प्रसिद्द सूफी पीर तकी को उनके जीवन के उत्तरार्ध का उस्ताद मानती है|लेकिन हिन्दू संत ही मानव रूप में उनके गुरु दिखते हैं,जिनके प्रति अपने गीतों में उन्होंने श्रद्धा व्यक्त की है|
कबीर के बारे में हमें जो थोड़ी-सी जानकारी है,वह उस प्राच्य रहस्यवादी से सम्बंधित तत्कालीन बहुत-सी धारणाओं का खंडन करती है|साधना(displine) के वे सोपान जिनसे वे गुजरे,वे तौर-तरीके जिनमें उनकी धार्मिक प्रतिभा विकसित हुई,उनसे हम पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं|वे वर्षों रामानंद के शिष्य रहे |रामानंद अपने समय के सभी महान मुल्लाओं और ब्राह्मणों से ब्रह्म विज्ञानी और दार्शनिक शास्त्रार्थ करते थे|इस आधार पर शायद हम कबीर की हिन्दू और सूफी दर्शन से सम्बन्ध की जानकारी पा सकते हैं|हो सकता है कि हिन्दू या सूफी ध्यान-मनन की परम्परागत शिक्षा उन्हें मिली भी हो और नहीं भी|लेकिन यह स्पष्ट है कि उन्होंने पेशेवर सन्यासी का जीवन ग्रहण नहीं किया था या ध्यानशीलता,तप एवं विशिष्ट खोज में अपने आपको समर्पित करके वे संसार से विरक्त नहीं हुए थे|वे कुशल संगीतज्ञ और कवि थे|उनकी आराधना के अन्तरंग जीवन की कलात्मक अभिव्यक्ति उनके संगीत और कविता में हुई है|वे स्वस्थचित्त और मिहनती स्वाभाव के पूरबिया दस्तकार थे|सभी किम्वदंतियां इस बात पर एकमत हैं कि कबीर बुनकर थे|वे अपनी जीविका करघा से चलाते थे|वे एक निरक्षर आदमी थे|टेंट निर्माता पॉल,मोची बोह्मो,ठठेरे बनियन की तरह वह जानते थे कि विजन और उद्योग का मिलान कैसे किया जाता है|ध्यान के भाव में विघ्न डालने की अपेक्षा उनका हस्तशिल्प इसमें मदद करता था|शरीर मात्र को कष्ट देने वाले तप से उन्हें घृणा थी|वे सन्यासी नहीं एक शादीशुदा आदमी थे|वे एक परिवार के पिता थे|तपोमय जीवन पर जोर देने वाली हिन्दू किम्वदंतिया इस तथ्य की अनदेखी करती हैं|उन्होंने अलौकिक प्रेम के अपने हर्षोन्मत गीतों में जो कुछ गाया,वह सामान्य लोगों की समझ से परे है|उनका कर्म उनके जीवन की परम्परित कथा की पुष्टि करता है|प्रेम और त्याग के अवसरों के लिए घरेलू जीवन की तथा दैनिक अस्तित्व के महत्व और यथार्थ के वे बार-बार प्रशंशा करते हैं|पेशेवर योगी की पवित्रता की अवहेलना करते हुए वे कहते हैं-‘योगी ने लम्बी दाढ़ी बढ़ा रखी है और उसकी जटाएं उलझी हुयी हैं|इस कारण वह बकरे की तरह दीखता है|’वह योगी इससे भी आगे बढ़कर प्रेम,ख़ुशी और सुन्दरता से बने संसार से पलायन कर जाना चाहता है|उस संसार से,जो आदमी की खोज की सबसे उपयुक्त जगह है|उस ‘सत्य’ को नहीं पाया जा सकता है|इस सम्पूर्ण संसार में उसके प्रेम की जोत फैली हुयी है|
वैसे देश-काल में उस निडर और मौलिक मनोवृत्ति की पहचान के लिए संत साहित्य के अधिक ज्ञान की जरुरत नहीं है|हिन्दू या मुसलमान दोनों तरह की कट्टरपंथी पवित्रता के लिहाज से कबीर विशुद्ध विधर्मी थे|सभी सांस्थानिक धर्मो और बाह्याचारो को वे उसी तीव्रता और सम्पूर्णता में नकारते थे,जैसे क्वैकर्स नकारते थे|जहां तक इनके धार्मिक विचारों का सवाल है,उनकी छवि एक खतरनाक आदमी की थी| ‘अलौकिक सत्य’ के साथ ‘सहज समाधि’ का उन्होंने निरंतर गुणगान किया|वह ‘अलौकिक सत्य’ प्रत्येक आत्मा की ख़ुशी और कर्तव्य में है|वह कर्मकांड और शारीरिक तप दोनों से परे है|उनका भगवान् न तो काबा में है,न कैलाश में|जिन्हें उसकी खोज है,उन्हें दूर जाने की जरुरत नहीं|वह हर कहीं है|एक स्वयंसिद्ध पवित्र आदमी की तुलना में ‘एक धोबी और एक बढ़ई’ में उसे ढूँढना अधिक आसान है|इसलिए हिन्दू और मुसलमान दोनों की धर्मपरायणता के सारे उपकरणों-मंदिर और मस्जिद,मूर्ति और पवित्र जल तथा धर्मग्रन्थ और पुजारी-का समान रूप से इस विद्रोही कवि ने खंडन किया|उन्होंने आत्मा और प्रेम के मध्य आने वाली सभी मृत चीजों का तिरस्कार किया है-
सारे बिंब जीवनहीन हैं,
वे बोल नहीं सकते,
मैं जानता हूँ,
उनके लिए मैं बहुत रोया,
पुराण और कुरआन शब्द मात्र हैं,
परदा उठाकर मैंने सब देखा है|
इस तरह की बात किसी संगठित मठ के द्वारा बर्दाश्त नहीं की जा सकती|यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि पुजारी प्रभावित अपने कर्म-क्षेत्र बनारस में कबीर उत्पीडित किये गये हों|एक बहुज्ञात किम्वदंती के अनुसार ब्राह्मणों ने एक सुन्दर गणिका को उनके पास उन्हें लुभाने और परवर्तित करने के लिए भेजा था-मैगाडाले की तरह|उच्च प्रेम के स्रष्टा से उस गणिका का अचानक मिलन इस बात का प्रमाण है कि तत्कालीन धार्मिक शक्तियां कितने भय और अनादर से कबीर को देखती थी|कम से कम एक बार किसी को स्वस्थ कर देने के काल्पनिक चमत्कार की उपलब्धि के बाद उन्हें बादशाह सिकंदर लोदी के पास लाया गया और दैवीय शक्ति के वाहक का दावा करने वाले के रूप में आरोपित किया गया|लेकिन सिकंदर लोदी एक महत्वपूर्ण संस्कृति का राजा था|अपनी निजी आस्था से सम्बंधित मौजी प्रकृति के संत लोगों के प्रति उदार था|जन्मना मुसलमान कबीर ब्राह्मण धर्माधिकारियों के लिए बाहरी और सूफियों के वर्ग के थे,जिन्हें महान ब्रह्मविज्ञानी स्वातंत्र्य प्राप्त था|यद्यपि शांति कायम रखने के लिए उन्हें बनारस से निर्वासित कर दिया गया था,फिर भी वे अपने काम में लगे रहे|यह घटना १४९५ ई. की लगती है,जब वे साठ के करीब थे|उनके जीवन की यह अंतिम घटना है,जिसकी हमें निश्चित जानकारी है|तत्पश्चात वे उत्तर भारत के नगरों में घूमते हुए दिखाई देते हैं|वे नगर उनके शिष्यों के केंद्र-स्थल हैं|प्रेम के प्रचारक और कवि के रूप में उन्होंने अपना निर्वासित जीवन व्यतीत किया|प्रेम,जिसके बारे में अपने एक गीत में वे कहते हैं, ‘काल के प्रारंभ से’ वह नियत है|अब वे बूढ़े और कमजोर हो गये थे|उनके हाथ इतने दुर्बल हो गये थे कि वे अपना प्रिय वाद्य भी नहीं बजा सकते थे|१५१८ में गोरखपुर के नजदीक मगहर में उनकी मृत्यु हो गयी|
एक बहुत खूबसूरत किम्वदंती है कि उनकी मृत्यु के बाद उनके हिन्दू और मुसलमान शिष्यों में उनके शव के स्वामित्व को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ|मुसलमान शिष्य दफनाना चाहते थे तो हिन्दू शिष्य जलाना|वे जब आपस में बहस कर रहे थे,तब कबीर उनके सामने प्रकट हुए और उनसे कहा कि वे कफ़न उठाये और नीचे देखें कि क्या कुछ पडा है|उन्होंने ऐसा ही किया और पाया कि वहाँ फूलों का ढेर है|उसमें से आधा मुसलामानों ने मगहर में दफनाया और आधा हिन्दू बनारस जलाने के लिए ले आये|दो महान धर्मों के सर्वाधिक सुन्दर सिद्धांतो को सुगन्धित बनाने वाले व्यक्ति के कर्मरत जीवन का यह उपसंहार था|
(2)
एक तरह से रहस्यवादी कविता ‘सत्य दर्शन’ के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित की जा सकती है,दूसरी ओर यह भविष्यवाणी का एक रूप है|दो बिन्दुओं को मिलाने वाली रहस्यवादी चेतना की यह विशेष खासियत है|ऊपरी तौर पर यह ईश्वर की आराधना है,लेकिन आंतरिक रूप से पारलौकिक जीवन के रहस्यों की दूसरे लोगों के लिए अभिव्यक्ति है|इसलिए इस चेतना की कलात्मक अभिव्यक्ति दोहरे चरित्र की है|यह प्रेम-कविता है,लेकिन ऐसी प्रेम कविता, जो प्रायः मिशनरी उद्देश्य से लिखी जाती है|
कबीर के गीत हर्षातिरेक और प्रेम से भरे हैं|वे साहित्यिक भाषा में नहीं, लोकप्रिय हिंदी में लिखे गये हैं| जाको पॉल दा तोदी और रिचार्ड रॉल की देसी भाषा में लिखी कविताओं की तरह कबीर ने अपने गीत जानबूझकर जनता को संबोधित करके लिखे|उन्होंने पेशेवर धार्मिक वर्ग को संबोधित करके नहीं लिखा|सामान्य जीवन से लिए गये बिम्बों से वे प्रभावित हैं|वे गीत सार्वदेशिक अनुभवों से भरे हैं|अत्यंत ईमानदार अपील से भरे ये गीत सरलतम रूपकों में हैं|ऐसे आवेग और सम्बन्ध से भरे रूपक,जिन्हें हर कोई जानता है,जैसे दूल्हा-दुल्हन,गुरु-शिष्य,तीर्थयात्री,किसान तथा प्रवासी पक्षी यानी आत्मा (हंसा)|आत्मा और परमात्मा का संयोग अनुभवातीत है|यह हंसा सच्चे और तीव्र विश्वास के साथ हमें घर (ईश्वर के) जाने के लिए प्रेरित करता है|उसकी दुनिया में ‘लोक’ और ‘लोकोत्तर’ के बीच कोई दीवार नहीं है|प्रत्येक वस्तु ईश्वर की लीला है,इसलिए हर वस्तु यहाँ तक कि विनम्रतम प्रार्थना भी सृष्टिकर्ता के मन के रहस्य को व्यक्त करने में सक्षम है|
महानतम रहस्यवादियों की यह सामान्य विशेषता है कि अलौकिक सच्चाइयों को प्रस्तुत करने के लिए वे भौतिक साधनों का प्रयोग करते हैं| जब वे अंततः सच्ची समाधि प्राप्त कर लेते हैं,तब उनके लिए सृष्टि की सारी चीजें समान अधिकार से युक्त हो जाती हैं|समान अधिकार यानी भगवान् की उपस्थति की सांस्कारिक घोषणाएं|घरेलू एवं शारीरिक प्रतीकों का उनका निर्भय नियोजन तथा प्रायः आश्चर्यजनक और अनभ्यस्त स्वाद के प्रति विद्रोह भी उनके आध्यात्मिक जीवन के आनंदातिरेक के प्रत्यक्ष हिस्से हैं|महान सूफियों और जाको पॉल दा तोदी,रुजब्रोक,बोह्मो जैसे ईसाइओं के साहित्य इस तरह के चित्रों से भरे हुए हैं|इसलिए हमें कबीर के गीतों में उनकी भाव समाधि की अभिव्यक्ति के दुःसाहसी प्रयास को देखकर आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए|ठोस एवं आध्यात्मिक भाषा के निरंतर सान्निध्य के जरिए वे दूसरों को भी इस अनुभव के लिए राजी करते हैं|इस एकांतरण के लिए स्वाभाविक तौर पर मन को बदलना जरुरी है,जिससे आदमी काम लेता है|मन में ही पुराने बोध जड़ जमाए हुए हैं|इसे हम ठीक से समझने का प्रयास करें तो उनकी कविता हमारी समझ से दूर नहीं होगी| कबीर सर्वोच्च रहस्यवादियों के उस छोटे से समूह में परिगणित हैं जिनमें संत अगस्थिन,रुजब्रोक और सूफी शायर जलालुद्दीन रूमी आदि प्रमुख हैं|उन्होंने वह उपलब्ध किया है,जिसे ईश्वर का संश्लिष्ट विजन कहा जा सकता है|उन्होंने ईश्वर की वैयक्तिक और अवैयक्तिक,अनुभवातीत और अन्तस्थ,स्थिर और गतिशील अवधारणाओं तथा दर्शन की ‘परम सत्ता’ एवं भक्ति धर्म के ‘सच्चे मित्र’ के मध्य निरंतर विरोध देखा है|एक के बाद दूसरी असंगत अवधारणाओं को स्पष्टतया अपनाकर उन्होंने यह नहीं किया है,बल्कि एक आध्यात्मिक लोक,जिसके वे वासी हैं,की उच्चता का आरोहण करके ऐसा किया है|रुजब्रोक ने जैसा कहा है-एक सत्ता में मिलना और समाहित होना,पूर्ण समग्रता के विरोधों को आत्मसात करते हुए महसूस करना है|यह काम दोनों के लिए अपरिहार्य है|कबीर और रुजब्रोक इसके प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं|उनके अनुसार सृष्टि के तीन क्रम हैं-‘जो हो रहा है’, ‘जो है’ और-उनसे ‘अधिक जो होने वाला है’|यही तीनों क्रम ईश्वर हैं|भगवान् जो अनुभूत होता है,वह कोई अंतिम कल्पना नहीं,बल्कि एक वास्तविकता है|वह प्रेरित करता है,वह सहारा देता है और वह सचमुच में है|अस्तित्व ग्रहण करता हुआ ससीम संसार और अस्तित्वमान असीम संसार दोनों अपनी वास्तविकताओं के बावजूद अनुभवातीत हैं|वह सर्वव्यापी परम सत्य’ है,जिसमे ‘सबकुछ व्याप्त’ है|उसमें दुनिया माया की तरह है|उनकी व्यक्तिगत अवधारणा में ‘वह’ प्रियतम है जो प्रत्येक आत्मा को शिक्षित करने वाला और जोडने वाला साथी है|अन्तर्यामी शक्ति के रूप में मान्य वह ‘योगियों का योगी’ है|लेकिन ये सभी उसकी प्रकृति के श्रेष्ठ आंशिक रूप हैं,जो परस्पर दोष निवारक हैं| त्रिक के ईसाई सिद्धांतों से यह ब्रह्म विज्ञानी रेखालेख(डायग्राम) अदभुत सादृश्य रखता है|ईसाई सिद्धान्त के ये लोग ‘शाश्वत एकता’ के ऐसे भिन्न और पूर्ण अनुभवों के रूप में व्यक्त करते हैं,जिसमें वे समाहित हैं|जैसे रूजब्रोक यथार्थ का एक धरातल देखता है, जिस पर हम पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा’ के बारे में अधिक कुछ नहीं कह सकते हैं | हम अधिक से अधिक उस ‘एक अस्तित्व’ को अनुभव करते हैं | उन अमर लोगों का सार यह है कि वह एक अस्तित्व है | इसलिए कबीर कहते हैं कि असीम और ससीम दोनों के परे शुद्ध यथार्थ ‘वही’ है |
ब्रह्म एक अनिर्वचनीय तथ्य है, जिसकी तुलना ‘प्रतिअनुकूलित अनुकूलित भिन्नता से की गई है | वह मात्र एक शब्द है |’ एक नज़र में वह पूर्ण अनुभवातीत एवं भाववादी दर्शन है | वह हमारी आत्मा का प्रेमी है | वह सबके प्रति समान और प्रत्येक के प्रति विशेष है, जैसा कि एक ईसाई रहस्यवादी के लिए होता है | यथार्थ वर्णन के लिए इन दोनों रास्तों की आवश्यकता का कबीर द्वारा महसूस किया जाना उनके आध्यात्मिक अनुभव की समृद्धि और संतुलन का प्रमाण है, जिसे न तो दैवीय और न मानवतारोपी प्रतीक अकेले व्यक्त कर सकते हैं | अतः ब्रह्म दर्शन की सभी अवधारणाओं और सभी भावपूर्ण अंतर्ज्ञानों से युक्त हो जाने पर वह पूर्ण से अधिक पूर्ण और मानव मस्तिष्क से अधिक अपना है | वह एक महान शब्द का केंद्र, जीवन और प्रेम का माध्यम तथा इच्छा की अद्भुत तुष्टि है | उसका रचनात्मक शब्द ‘ओम’ या ‘अनंत हाँ’ है |
दैवीय प्रकृति से निकलने वाले नकारात्मक दर्शन के सारे गुण ईश्वर को उस रूप में वर्णित करते हैं जो वह नहीं है | वे उसे ‘रिक्तता’ के स्तर तक घटा देते हैं | यह बात इस महान कवि के लिए घृणित वस्तु है | कबीर कहते हैं – “ब्रह्म निराकार में कभी नहीं पाया जा सकता |” उसके प्रेम की ज्योति संसार में व्याप्त है | उसकी पूर्णता को सिर्फ प्रेम की आँखों से देखा जा सकता है | उसे जानने वाले इसी रूप में उससे तादात्म्य स्थापित करते हैं, यद्यपि वे उसे व्यक्त नहीं करते | वह आनंदपूर्ण एवं अनिर्वचनीय रहस्य है |
कबीर दैवीय प्रकृति की निजी और ब्रह्मांडीय अवधारणा के बीच संश्लेषण करके उन तीन खतरों से बच निकलते हैं, जो रहस्यात्मक धर्म के लिए अहितकर हैं |
प्रथम, वे अतिशय भावुकता से बचते हैं | भावुकता एक विशेष मानवतारोपी समर्पण की प्रवृत्ति है, जो दैवीय व्यक्तित्व के अनियंत्रित रूप का परिणाम है – विशेष रूप से अवतारी रूप के अंतर्गत, जो भारतवर्ष में कृष्ण आराधना की अतिशयोक्ति में तथा यूरोप में कुछ विशेष ईसाई संतों की भावुकतापूर्ण उच्छृंखलताओं में दिखता है |
दूसरे, वे शुद्ध अद्वैत के आत्महंता निष्कर्षों से बचते हैं | यद्यपि आत्यंतिक रूप से तार्किक अद्वैत का आशय एकता पर बल देता है | यह आत्मा और परमात्मा के बीच एकता का तत्व है | आध्यात्मिक जीवन के उद्देश्य के रूप में एक पूर्ण अद्वैतवादी के लिए आत्मा सत्य है और तत्वतः ईश्वर से अभिन्न है | मनुष्य का सच्चा ध्येय अव्यक्त पहचान का प्रत्यक्षीकरण है | वह प्रत्यक्षीकरण ही अद्वैतवादी सिद्धांत सूत्र की अभिव्यक्त अनुभूति है | उस अनुभूति की कला ही ईश्वर है | लेकिन कबीर कहते हैं – ब्रह्म और जीव “सदा पृथक हैं और अंततोगत्वा सदा संयुक्त हैं |” आदमी के लिए आध्यात्मिक और साथ ही साथ भौतिक जगत की पहचान ईश्वर की पाद पीठ से अधिक नहीं है | ईश्वर के साथ आत्मा का संयोग प्रेम का संयोग है | दोनों का परस्पर निवास आवश्यक है | द्वैत सम्बन्ध जिसे सभी रहस्यात्मक धर्म व्यक्त करते हैं, ऐसा आत्मविसर्जन नहीं, जिसमें व्यक्तित्व के लिए कोई स्थान नहीं हो | शाश्वत पृथकता तथा ईश्वर और आत्मा के पृथकत्व में रहस्यात्मक मेल संतुलित रहस्यवाद का आवश्यक सिद्धांत है | जो आस्था इस पृथकता और संयोग के रहस्य को नहीं मानती, वह आत्मा के आध्यात्मिक संसार में विलय का अंश मात्र भी नहीं व्यक्त कर सकती | इसका अभिकथन (समर्थन) रामानुज द्वारा उपदेशित वैष्णवी सुधार का विशिष्ट गुण है, जिसकी नीतियाँ रामानंद के जरिए कबीर तक पहुँचीं | अंतिम, प्रेम की सर्वोच्च सत्ता के रूप में ईश्वर का प्रत्यक्ष एवं उष्मित मानवीय बोध तथा आत्मा के साथी, शिक्षक और दूलहा के रूप में उसका बोध कबीर की कविता में आवेगपूर्ण ढंग से निरंतर अभिव्यक्त हुआ है | ये भाववादी प्रवृत्तियाँ उनकी यथार्थ दृष्टि के आध्यात्मिक पक्ष का जन्मजात गुण है, जो उसे बौद्धिक सूत्र की निष्प्राण पूजा में विकृत होने से रोकती हैं | निष्प्राण पूजा वेदांती स्कूल का अभिशाप हो गई थी | निरी बौद्धिकता और निरी भक्तिमूलकता का वे कम समर्थन करते हैं | प्रेम उनका ‘एकमात्र पूर्ण स्वामी’ है | वह अधिक स्वच्छंद जीवन का अद्भुत स्रोत है, जिसका वे आनंद लेते हैं | वह असीम और ससीम संसार को मिलाने का सामान्य कारक तत्व है | सबकुछ उसके प्रेम में सराबोर है | प्रेम जिसका वर्णन जोहानिन की भाषा में प्रायः ईश्वर के रूप में किया गया है | सारी सृष्टि शाश्वत प्रेमी की लीला है | जीवित होना, परिवर्तित होना तथा विकसित होना सब ब्रह्म के प्रेम और आनंद की अभिव्यक्ति है | मानव जीवन की उत्पत्ति को ये दोनों (प्रेम और आनंद) आवेग संचालित करते हैं, इसलिए सुख और दुःख के कुहासे के परे, कबीर उन्हें (प्रेम और आनंद को) ईश्वर की रचनात्मक क्रीड़ा को संचालित करते हुए पाते हैं | प्रेम ही उसका प्रकट रूप है, आनंद उसकी अभिव्यक्ति है | स्वीकार की प्रसन्न क्रीड़ा- अनंत हाँ (ओम)- से सृष्टि बनती है, वह दैवीय प्रकृति के गर्भ में निरंतर प्रकाशित है| यह बात हिन्दू धार्मिक विचारों के सामान्य कोष से गृहीत बहुत से अभिप्रायों में से एक है, जो उनकी कवि प्रतिभा से ज्योतित हुई है | स्पंदन, लय और निरंतर परिवर्तन कबीर के यथार्थ बोध के अभिन्न अंग हैं | यद्यपि अनंत और पूर्ण उनकी चेतना में बने रहते हैं, फिर भी ईश्वरीय प्रकृति की उनकी अवधारणा निश्चित रूप से गतिशील है | गति के ही प्रतीकों के जरिए, वे हम तक ‘उसे’ संप्रेषित करने की प्रायः कोशिश करते हैं, जैसे नृत्य के अपने सुस्थिर सन्दर्भ में या प्रेम के रज्जू से झूलने वाले सृष्टि के शाश्वत झूले के विलक्षण आधुनिक चित्र के रूप में |
यह रहस्यात्मक साहित्य का चिह्नित किया जाने वाला गुण है कि महान धर्म संघ अतीन्द्रिय भाईचारे की अपनी प्रकृति को संप्रेषित करने के अपने प्रयास में अनिवार्यतः ऐसे ऐन्द्रिय बिम्बों को रचते हैं, जो अश्लील और गलत भी होते हैं | हमारी सामान्य मानवीय चेतना इस तरह स्वातंत्र्य प्रेमी है कि अंतर्ज्ञान का फल अपने आप सहज ज्ञान से उन बिम्बों से संदर्भित हो जाता है | अंतर्ज्ञान में रहस्यवादियों को सभी धुंधली लालसाओं और आंशिक इन्द्रिय आकांक्षाओं की पूर्ण परिपूर्ति होती लगती है | तब वे अटल घोषणा करते हैं कि वे अविद्यमान ज्योति के दर्शन करते हैं, वे दिव्य संगीत का श्रवण करते हैं, वे प्रभु के माधुर्य का आनंद लेते हैं, वे अनिर्वचनीय सुवास को जानते हैं और वे प्रेम के संयोग को महसूस करते हैं | वस्तुतः ‘उसके’ दर्शन करना और ‘उसे’ पूरी तरह महसूस करना, ‘उसका’ आध्यात्मिक श्रवण, ‘उसकी’ प्रीतिकर सुरभि और प्यास बुझाने वाली घूँट नौरविच के जुलियन सी है, जिनकी मनोसंवेदी स्वचलतायें तीक्ष्ण हैं, वे इन्द्रिय और आत्मा की बराबरी को अपनी चेतना में भ्रमों के रूप में महसूस करते हैं | ‘वह’ सुसो द्वारा देखी गई ज्योति की तरह, राल द्वारा सुने गए दिव्य संगीत की तरह, सेना सेल के सेंट कैथरीन ने जिसे आत्मसात किया, उस दिव्य सुरभि की तरह तथा सेंट फ्रांसिस एवं सेंट टेरेसा द्वारा अनुभूत शारीरिक घाव की तरह है | प्रतीकवाद की ये अतिनाटकीयताएँ हैं, जिसके अंतर्गत रहस्यवादी सतह की चेतना के प्रति सहज ज्ञान से अपने आध्यात्मिक अंतर्ज्ञान को प्रस्तुत करने के लिए अभिमुख होता है | वह विशेष ज्ञान, जिसका वे (कबीर) अनुभव करते हैं, अधिक व्यंजक यथार्थ है, जो समन्वय के रूप में व्यक्त होता है |
कबीर से जैसी उम्मीद की जा सकती है-उनकी आध्यात्मिक कोटि की प्रतिक्रिया अनुभूतिजन्य प्रतीकों के कारण बहुत व्यापक और विभिन्नता युक्त है|वे कहते हैं कि उन्होंने ब्रह्म की दीप्ति बिना दृश्य के देखी है,ब्रह्म की शाश्वत सुधा चखी है,परम के साथ आह्लाद से भरे संयोग का अनुभव किया है और स्वर्गिक फूलों के सुवास को सूंघा है|लेकिन वे आत्यंतिक रूप से एक कवि और संगीतज्ञ थे |लय और संगीत उनके पोशाक की शोभा और सच्चाई थे|इसलिए रिचर्ड रॉल की तरह अपने गीतों में वे अपने आपको व्यक्त करते हैं|वे सबसे पहले एक सांगीतिक रहस्यवादी थे|वे बार-बार कहते हैं कि सृष्टि संगीत (अनहदनाद) से भरी हुयी है,यह संगीतमय है|सृष्टि के ह्रदय पर ‘उज्ज्वल संगीत बज रहा है|’प्रेम राग बुनता है जबकि सन्यास काल को मारता है|इसे घर और स्वर्ग कहीं भी सुना जा सकता है|इसे सामान्य जन वैसे ही कानों से सुन सकता है,जैसे एक तपोनिष्ठ सन्यासी अपनी अनुभूतियों से|इसके अतिरिक्त प्रत्येक मनुष्य का शरीर एक वीणा है,जिसे ब्रह्म बजाता है|ब्रह्म हर तरह के संगीत का स्रोत है|हर जगह कबीर असीम के संगीत को सुनते हैं|वैसा दिव्य संगीत,जिसे देवदूत सेंट फ्रांसिस के लिए बजाते हैं तथा वैसी आध्यात्मिक सिम्फनी जो रॉल की आत्मा को उल्लसित आनंद से भर देती है|एक चित्र जिसे उन्होंने हिन्दू देवकुल से लिया है और जिसका वे निरंतर प्रयोग करते हैं,वे अमर बांसुरी वादक कृष्ण हैं|लयात्मक स्पंदन ब्रह्म के सम्मुख सृष्टि का रहस्यमय नृत्य है,जो एक ही साथ पूजा की क्रिया और सर्वव्यापी ईश्वर के असीम हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति है|इस लयात्मक स्पंदन के दृश्यात्मक मूर्तमान रूप में कबीर दिव्य संगीत(अनहद नाद) सुनते हैं|
सृष्टि के इस व्यापक और हर्षमिश्रित विज़न के बावजूद कबीर दैनिक अस्तित्व और सामान्य जीवन को कभी नहीं भूलते | उनके पाँव दृढ़तापूर्वक धरती पर जमे हैं | उनका अक्खड़ और आवेगमय बोध संतुलित और तेजस्वी बुद्धि से निरंतर नियंत्रित है | यह नियंत्रण ऐसे सतर्क कॉमन सेंस के द्वारा संभव होता है, जो प्रायः वास्तविक रहस्यात्मक प्रतिभा में पैदा होता है | सादगी और डायरेक्टनेस का निरंतर आग्रह, हर तरह की अमूर्तता, दार्शनिकता तथा बाह्याचार की निष्ठुर आलोचना उनकी चिह्नित की जाने वाली विशेषताएँ हैं | सभी तरह के प्रत्यक्षीकरण का मूल उद्गम ईश्वर है, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही रूपों में सामान है | ईश्वर आदमी की एकमात्र आवश्यकता है – “जब तुम मूल में जाओगे सारी खुशियाँ तुम्हारी होंगी |” अतः वे अपनी आँख ‘एकमात्र आवश्यकता’ पर रखते हैं | उनके लिए संप्रदाय, धर्ममत, धार्मिक समारोह, दर्शन के निचोड़ तथा संन्यास के अनुशासन तुलनात्मक रूप से व्यर्थ की बातें हैं | कबीर ऐसा भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, जिससे आत्मा ब्रह्म से सहज संयोग कर सकती है | यही आत्मा का ध्येय है | ब्रह्म के साथ आत्मा का सहवास ही इसकी उपलब्धि है | इसलिए कबीर की यह कट्टर उदारता है कि कभी वे वेदांती लगते हैं और कभी वैष्णव, कभी सर्वेश्वरवादी हैं तो कभी अनुभवातीतवादी और कभी ब्राह्मण हैं तो कभी सूफ़ी | ब्रह्म उनके जीवन का नियंता है | वह अतिविस्तृत है और एकदम पास भी | उस अनिर्वचनीय भावबोध के बारे में सत्य कहने के प्रयास में वे उस गुत्थी को एकसाथ समझ लेते हैं, जैसे वे अपने करघे पर परस्पर विरोधी धागों को बुनते हैं | वह करघा जो उनके सर्वाधिक उग्र और परस्पर विरोधी दर्शनों और आस्थाओं से निकले प्रतीकों और विचारों का प्रतिरूप है | सभी आस्थाएँ एवं दर्शन ‘उसे’ समझने में सहायक हैं | उपनिषद ने ‘उसे’ सूर्य-सा ज्योतित बतलाया है | वह अंधकार से परे है | उज्ज्वल प्रकाश की प्रचुरता को दर्शाने के लिए सभी रंगों के वर्णक्रम को देखना जरूरी है | इस तरह अपने इस्तेमाल के लिए वे पारंपरिक तरीकों को अनुकूल बनाते हुए रहस्यवादियों में सामान्य रूप में प्रचलित एक तरीके का अनुसरण करते हैं | वे रूप की मौलिकता के लिए किसी तरह का विशेष प्रेम विरले ही प्रदर्शित करते हैं | वे अपनी शराब प्रायः उसी बर्तन में रखते हैं जो हाथ में आता हो | वे आमतौर पर उन्हें प्राथमिकता देते हैं, जो सौंदर्य तथा अर्थवत्ता के धरातल को उन्नत करते हैं तथा जो अपने समय के प्रचलित धार्मिक या दार्शनिक सूत्र हैं | इस तरह हम पाते हैं कि कबीर की कुछ श्रेष्ठतम कविताएँ विषयवस्तु के रूप में हिन्दू दर्शन और धर्म की घिसी-पीटी बातों की है, जैसे - ईश्वर की लीला, परमानन्द का सागर, आत्मा का पक्षी (हंसा), माया, सहस्रदल कमल और रूपहीन रूप | फिर बहुत सी कविताएँ सूफी बिम्बों और भावों से सराबोर हैं | दूसरी विशेषता है उनकी रचना में भारतीय जीवन की सामान्य परिस्थितियों और प्रसंग, जैसे मंदिर की घंटियाँ, दीपक का समारोह, विवाह , सती और मौसम की विशेषताएँ | उनके द्वारा अनुभूत सारी चीजें अपने रहस्यात्मक रूप में ब्रह्म से आत्मा के सम्बन्ध की प्रतीक-सी हैं | इनमे से कई में विशेष रूप से सुन्दर और भारतीय भाव प्रकृति के प्रति प्रकट हुए हैं |
यहाँ अनूदित गीतों के संग्रह में ऐसे उदाहरण मिलेंगे जो कबीर के चिंतन के करीब सभी पक्षों को उद्घाटित करते हैं | सभी पक्ष यानी एक रहस्यवादी के मनोभाव के सभी उतार-चढ़ाव, जैसे समाधि, निराशा, नीरव परमानन्द, उग्र आत्मसमर्पण, विस्तृत ज्योति की चमक और आत्म विभोर प्रेम के क्षण | संसार का उनका व्यापक और गहरा ज्ञान, सृष्टि का शाश्वत खेल, ईश्वर के अस्तित्व में संसार का ‘मनकों की तरह होना’ यहाँ दिखता है | शाश्वत प्रेमी के साथ आत्मीय घनिष्ठता के उनके प्यारे और सुकुमार भाव तथा सबके ऊपर उनकी सुन्दर कविता भी यहाँ है | सत्ता के ये स्पष्ट विरोधाभासी विचार ब्रह्म में नियोजित हैं, इसलिए दूसरे सभी प्रतिमुख- दासता और मुक्ति, प्रेम और त्याग तथा आनंद और पीड़ा- ब्रह्म में मिल जाते हैं | ब्रह्म के साथ संयोग आत्मा के लिए महत्वपूर्ण है | यदि हम उसे अपनावें तो उसकी आवश्यकता, संयोग और ईश्वर की खोज सब कुछ सरल और अत्यंत स्वाभाविक है | संयोग प्रेम से उत्पन्न होता है- ज्ञान या औपचारिक रीति-रिवाजों से नहीं | और ज्ञान से संयोग होता है | वह अकथनीय है | वह ‘न तो यह है, न वह’, जैसा रुजब्रोक कहता है | वास्तविक पूजा और सहभागिता ‘आत्मा’ में और सत्य में है, इसलिए मूर्तिपूजा ‘शाश्वत प्रेमी’ का अपमान है | दिखावटी (प्रोफेशनल) पवित्रता के साधन व्यर्थ हैं | आत्मा की उदारता और शुद्धता से अलग कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं | सभी चीजों में और विशेष रूप से मनुष्य के ह्रदय में ब्रह्म निवास करता है, सबकुछ ब्रह्म आविष्ट है | ‘वह’ कहीं भी पाया जा सकता है- सामान्य मानवीय एवं दैहिक अस्तित्व में भी तथा भौतिक जीवन और पंक में भी | हम बिना पथ पार किए ध्येय तक पहुँच सकते हैं | घर आदमी की साधना की सबसे उपयुक्त जगह है, मठ नहीं | और यदि वह वहां ईश्वर को नहीं पाता है तो उसे बाहर आशा नहीं करनी चाहिए | ‘घर सच्चाई है |’ वहाँ प्रेम और विमुखता, दासता और स्वतंत्रता तथा ख़ुशी और दुःख आत्मा के ऊपर बारी-बारी से खेलते हैं ; और यह उनका द्वंद्व है जो असीम आनंद के अनहद संगीत से उपजता है | कबीर कहते है- “ब्रह्म के सिवा इस लय को कोई दूसरा नहीं उत्पन्न कर सकता |”
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कबीर के गीतों का यह अनुवाद मुख्य रूप से रवीन्द्रनाथ टैगोर ने किया है | कबीर की रहस्यात्मक प्रतिभा की प्रवृत्ति उनमें भी मिलती है | वे सभी, जो इन कविताओं को देखेंगे, टैगोर को कबीर की दृष्टि और विचार का विशेष सहृदय व्याख्याकार पाएँगे | यह संग्रह मुद्रित हिंदी टेक्स्ट के साथ श्री क्षितिमोहन सेन के बांगला अनुवाद पर आधारित है, जिन्होंने कबीर की कविताओं को विभिन्न स्रोतों से इकट्ठा किया है | उन्होंने कभी पुस्तकों और पाण्डुलिपियों से, कभी घुमंतू साधुओं और गायकों के मुख से गाए जाने वाले भजनों और कविताओं के विशाल संग्रह से, जिनसे कबीर का नाम जोड़ दिया गया है, अपना संग्रह तैयार किया है | उन्होंने प्रामाणिक गीतों को सावधानीपूर्वक, कबीर के नाम पर प्रचलित अप्रामाणिक साहित्य से, अलग किया है | उनके उन श्रम साध्य कार्यों से ही यह वर्तमान दायित्व संभव हो पाया है |
श्री क्षितिमोहन सेन के टेक्स्ट से पहले हमने श्री अजीत कुमार चक्रवर्ती द्वारा ११६ गीतों के अंग्रेजी अनुवाद की पांडुलिपि का भी अवलोकन किया है | उसमें कबीर पर लिखा उनका एक निबंध भी है | उससे हमने काफी मदद ली है | अनुवाद से यथेष्ट पाठ यहाँ हमने लिए हैं | निबंध में उल्लिखित बहुत से तथ्यों को इस परिचय में मिला लिया गया है | श्री अजीत कुमार चक्रवर्ती अत्यंत उदार और निःस्वार्थ स्वभाव के व्यक्ति हैं | हमारे काम के लिए उन्होंने अपनी पांडुलिपि हमें सौंप दी | वे कृतज्ञता से भरे हमारे धन्यवाद के पात्र हैं | (1999)
( मेरी आलोचना पुस्तक “साहित्य से संवाद” में यह अनुवाद शामिल है | )
पढ़ के लगा कि हजारी प्रसाद द्विवेदी और पुरुषोत्तम अग्रवाल नेअपनी पुस्तकों के मूल श्रोत अंडरहिल से ही ग्रहण किया है।आपको साधुवाद कि लेख को साधारणीकृत किया।
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