Monday 9 March 2015

रागी मन की वापसी

दो महीने बाद अपना यह पोस्ट लिख रहा हूँ/ सर गंगा राम अस्पताल के डाक्टरों की दवा और आप सब की दुआ से स्वस्थ हो कर आपके बीच हूँ/ जीवन और मृत्यु से संघर्ष करते हुए जो अनुभव हुए उसी  से यह पोस्ट शुरू कर रहा हूँ/ ...... ‘अब आप खतरे से बाहर हैं | इस नए जीवन का आनंद लें |’ आपरेशन के बाद जरूरी हिदायत के साथ अस्पताल से डिस्चार्ज करते हुए डॉक्टर ने अंग्रेजी में जो कहा,उसका सार यही था | लगभग यही बात संबंधियों-शुभेच्छुओं ने भी कही कि यह मेरा पुनर्जन्म है| पुनर्जन्म भी होता है क्या? इन दिनों जिज्ञासा और प्रश्न घेर लेते हैं-जब कभी अकेला होता हूँ | स्वास्थ्य लाभ के लिए घर पर पड़ा हूँ|कमजोरी के कारण न तो कहीं आ-जा सकता हूँ और न लिख-पढ़ सकता हूँ|ऐसे में अच्छे-बुरे खयालों का आना-जाना लगा ही रहता है|
          पुनर्जन्म में मेरा रत्ती भर भी विश्वास नहीं,लेकिन बचपन से एक दार्शनिक किस्म का आवारा-सा खयाल मेरे मन में कभी-कभार आता रहा है कि मरने के बाद अपने जीवन को दूर से देखना कैसा रहेगा ! कैसा लगेगा अपने गुरुजनों,परिजनों,मित्रों और आलोचकों की प्रतिक्रियाओं को देखना-सुनना! मैं नहीं मानता कि मृत्यु के बाद अपने जीवन का पुनरवलोकन संभव है| लेकिन यह जरूर मानता हूँ कि अपने से अपने आप को अलग करके जीवन को देखा जा सकता है| अपने भीतर के राग को विराग में बदलने से यह संभव है | जीवन से हमारा इतना अधिक रागात्मक मोह होता है कि इस विराग भाव के बारे में सामान्य मनुष्य सोच ही नहीं सकता | जो ऐसा सोच पाते हैं, वे इसे संभव बनाते हैं | मुझे लगता है कि हिंदी में निराला ने इसे संभव किया था, तभी तो ‘आँखों के डोरे लाल-लाल’ जैसी रागात्मक पंक्ति लिखने वाले कवि ने गहन विराग भाव से भरी ये पंक्तियाँ लिखी होंगी-‘मैं अकेला,देखता हूँ,आ रही मेरे दिवस की सांध्य बेला’ | इन्हीं विपरीत भावों के कारण वे ‘राग-विराग’ के कवि हैं | ग़ालिब तो इस विराग भाव के उस्ताद हैं ही | इस विराग भाव की उपलब्धि के कारण रवीन्द्र मृत्यु-संगीत का आनंद लेते हैं| इसी विराग भाव को उपलब्ध करके दार्शनिकों ने जीवन और जगत की निर्मम-बेबाक व्याख्या की है| यह विराग ही वैराग्य की आधारभूमि है| 
   सामान्य लोग  जीवनभर राग में डूबे रहते हैं| मुझे लगता है कि सबके जीवन में कभी-कभी विराग के क्षण भी जरुर आते होंगे| कुछ उसे समझते होंगे, कुछ नहीं| यह विराग भाव कुछ के ही जीवन में आकार ले पाता है, बाकी उसे भूले रहते हैं| मैं अपने को ऐसे ही भूल जानेवाले लोगों की श्रेणी में रखता हूँ| पिछले दिनों बीमारी के कारण मृत्यु मेरे इतना करीब आती गई कि मुझे उसकी स्पष्ट पदचाप सुनाई देने लगी | डाक्टरों ने बीमारी की गंभीरता और उसके खतरनाक परिणाम की चर्चा की,जिसका अर्थ था कि मेरा जीवन खतरे में है, अर्थात् आपरेशन का परिणाम कुछ भी हो सकता है| जाँच –रिपोर्ट के मुताबिक अपेंडिक्स चार–पांच दिन पहले फट चुका था,उसके  जहर के  शरीर में फैल जाने के कारण आंत पूरी तरह बंद हो चुकी थी,जो बहुत खतरनाक स्थिति थी| पल भर में मन एक दिशा से दूसरी दिशा में घूम गया-जीवन से मृत्यु की दिशा में | लगने लगा कि मृत्यु चारों ओर से मेरी जिंदगी की चौखट पर दस्तक दे रही है और मैं उसे साफ़ सुन रहा हूँ | मृत्यु-भय से मेरे ऊपर भावुकता हावी होती गई | बचपन से लेकर अब तक की जीवन-यात्रा स्मृति के परदे पर एकबारगी कौंध गई | मृत-जीवित सभी रक्त सम्बन्धी,अच्छे-बुरे सभी तरह के दोस्त,जीवन में उपस्थित रहे सभी स्त्री-पुरुष तेजी से याद आते रहे | जो जीवित हैं, उनसे एक बार मिल लेने की इच्छा तेज हुई | डाक्टर और नर्स जीवन-रक्षक उपकरण लगा चुके थे और उन्हें मानिटर कर रहे थे | इसी बीच कुछ खल मित्रों ने मोबाइल सन्देश के जरिए यह अफ़वाह उड़ा दी कि मेरा निधन हो गया है | यह सन्देश मेरे मोबाइल पर भी आया जिसे घरवालों ने पढ़ा ...| दिल्ली,पटना ,बनारस आदि जगहों से फोन आने लगे | जीवन के छूटने की आशंकाजनित पीड़ा से मैं नीम बेहोशी में चला गया | मेरे भाई और वहाँ उपस्थित लोगों ने समझा कि मुझे नींद आ गई है |
     लगभग एक घंटे बाद मेरी चेतना लौटी तो लगा कि इस अति ‘जीवन-मोह’ के कारण बचने की जो थोड़ी उम्मीद है,वह भी जाती रहेगी | फिर उपाय क्या है ! मृत्यु-भय शरीर के पोर-पोर में समा चुका था | मैंने अपनी स्वर्गीया माँ को याद किया | हर संकट में वह मुझे याद आती है | उसकी याद से मुझे ताकत मिलती है ,जैसे आस्तिकों को ईश्वर से मिलती है,वैसे ही | जानता हूँ कि यह शक्ति मनोवैज्ञानिक भर है,लेकिन उससे क्या,यह मेरे लिए तो भौतिक सच्चाई से बढ़कर है | शायद अवचेतन में यह बात बैठी है कि माँ हर मुसीबत से उबार लेगी | आखिर बचपन में तो उबार ही लेती थी न ! मृत्यु-भय से उपजी भावुकता को मैंने झटका और सोचा- हो जाए,जो होना है,मृत्यु ही सही | थोड़ी देर बाद मैं हर तरह के भय से मुक्त था | मन स्थिर हो चुका था | बचपन से अब तक का जीवन मेरे सामने था | अपना ही किया-अनकिया ; अच्छा-बुरा सब साफ़ –साफ़ दिख रहा था | बहुत-सी वे चीजें,जिनके लिए मैंने जमीन-आसमान एक कर दिया था, अब व्यर्थ थीं | ईर्ष्या नहीं थी,जीवन में जिन्हें शत्रु मानता था,उनके प्रति कोई कटुता नहीं थी | पत्नी,पुत्र,भाई,सम्बन्धी जिनके लिए अच्छे-बुरे का भेद भूलकर जीवन होम कर देने का जो भाव था,वह तिरोहित हो चुका था और उसकी जगह असम्पृक्त ह्रदय धड़क रहा था | भले ही न कर पाया होऊं,लेकिन दुनिया के लिए कुछ करने की जो युवा दीवानगी थी,वह भी शांत-चित्त थी | मैं अपने को बहुत सुखी महसूस कर रहा था | मन की यह स्थिति बहुत दिनों तक बनी रही | शायद यह मन का विराग भाव था ! 
    लेकिन आपरेशन के बाद सर गंगाराम अस्पताल के डाक्टरों की दवा और मित्रों-शुभेच्छुओं की दुआ से जैसे-जैसे स्वस्थ हो रहा हूँ,विरागी मन वैसे-वैसे तिरोहित हो रहा है | मनपसंद चीजें खाने की इच्छा होने लगी है,प्रिय मित्रों-सम्बन्धियों को याद करने लगा हूँ,देर से आने पर अखबार वाले को डांटने लगा हूँ,पत्नी से लड़ाई भी होने लगी है, बेटों के देर तक सोने पर गुस्सा होने लगा हूँ,विश्यविद्यालय का अपना काम याद आने लगा है,जंतर-मंतर पर भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ अन्ना के धरने में शामिल होने की इच्छा जोर मारने लगी है...| यह शायद मेरे भीतर रागी मन की वापसी है | दो महीने की यातना और मौत से संघर्ष के परिणामस्वरूप उपजा विराग भाव यादों से गायब हो रहा है | लगने लगा है कि यह रागी जीवन ही सच है,बाकी सब तो एक सपना था !    

                                                       

2 comments:

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  2. आत्मानुभूत सत्य की सटीक अभिव्यक्ति...अद्भुत !

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