‘हिंदी नवरत्न’ का
प्रकाशन संवत 1967 (सन 1910) में हुआ,जिसके लेखक
मिश्रबंधु थे|मिश्रबंधु से तात्पर्य उन तीन भाइयों से है,जिनका नाम गणेश बिहारी मिश्र,श्याम बिहारी मिश्र और
शुकदेव बिहारी मिश्र था|ये तीनों हिंदी में मिश्र बंधु नाम से प्रसिद्ध हुए और इसी
नाम से उन्होंने हिंदी में अनेक ग्रंथों की रचना की|हिंदी नवरत्न के लेखक के रूप
में मिश्र बंधु ही छपा है,लेकिन दूसरे पृष्ठ पर ‘मिश्रबंधु’ के नीचे गणेश बिहारी
मिश्र और शुकदेव बिहारी मिश्र का नाम छपा है|इससे पता चलता है कि ‘नवरत्न’ के लेखक
यही दोनों भाई हैं|
‘हिंदी नवरत्न’ में लम्बी भूमिका के बाद नौ
अध्याय हैं,जिनमे मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक के एक-एक कवि को रखा गया है|क्रम
इस प्रकार है:1-गोस्वामी तुलसीदास,2-महात्मा सूरदास,3-महाकवि देवदत्त (देव),4-महाकवि
बिहारीलाल,5-त्रिपाठी-बंधु: (क)महाकवि भूषण त्रिपाठी, (ख)महाकवि मतिराम
त्रिपाठी,6-महाकवि केशवदास ,7-महात्मा कबीरदास,8-महाकवि चंदबरदाई ,9-भारतेंदु बाबू
हरिश्चंद्र |यहाँ कवियों का क्रम काल क्रमानुसार नहीं रखा गया है|मिश्र बंधुओं ने
अपनी काव्य-धारणा के अनुसार कवियों की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर यह क्रम बनाया
है|इसमें कबीरदास और सूरदास के नाम के आगे ‘महात्मा’ विशेषण है तो कुछ कवियों के
नाम के आगे महाकवि|तुलसीदास और भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम के आगे लोक प्रचलित पद
रहने दिया गया है|आज मिश्र बंधुओं का क्रम निर्धारण और विवेचन विश्लेषण शायद ही
किसी को स्वीकार्य हो|’हिंदी नवरत्न” में कवियों का जीवन चरित,ग्रन्थ परिचय,रचना
विवेचन,काव्यांशों के उदहारण आदि बातें दी गयीं हैं|हिंदी कविता के विकास को समझने में
इससे कोई विशेष मदद नहीं मिलती|हिंदी आलोचना के विकास में अब इस पुस्तक का
ऐतिहासिक महत्व भर है|आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में
‘हिंदी नवरत्न’पर टिप्पणी करते हुए लिखा है: ‘कवियों का बड़ा भरी इतिवृत्त संग्रह
(मिश्रबंधु विनोद) तैयार करने के पहले मिश्रबन्धुओं ने ‘हिंदी नवरत्न’ नामक
समालोचनात्मक ग्रन्थ निकाला था जिसमें सबसे बढ़कर नई बात यह थी कि ‘देव’ हिंदी के
सबसे बड़े कवि हैं|हिंदी के पुराने कवियों को समालोचना के लिए सामने लाकर
मिश्रबंधुओं ने बेशक जरुरी काम किया |उनकी बातें समालोचना कहीं जा सकतीं हैं या
नहीं ,यह दूसरी बात है|” मिश्र बंधुओं ने ‘हिंदी नवरत्न’ में तुलसीदास
,देव,बिहारी,आदि का जो मूल्याङ्कन किया है ,वह हिंदी समाज को मान्य नहीं हुआ|शुक्ल
जी ने ‘हिंदी नवरत्न’ की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा है: ‘.........दैन्य भाव की
उक्तियों को लेकर तुलसीदास जी खुशामदी कहे गए हैं| ‘देव’ को बिहारी से बड़ा सिद्ध
करने के लिए बिना दोष के दोष ढूंढे गए हैं |.....इसी प्रकार की बेसिर पैर की बातों
से पुस्तक भरी है|कवियों की विशेषताओं के मार्मिक निरूपण की आशा में जो इसे खोलेगा,वह
निराश ही होगा’ |
‘हिंदी नवरत्न’ के अनुसार
तुलसीदास सबसे बड़े कवि हैं,सूर का स्थान दूसरा है और देव तीसरे स्थान
पर आतें हैं|मिश्रबंधु लिखते हैं : ‘...भाषा-साहित्य में सूरदास,तुलसीदास और
देव,ये सर्वोच्च तीन कवि हैं|इनमें न्यूनाधिक बतलाना मत-भेद से खाली नहीं है|...हम
लोगों का अब यह मत है कि हिंदी में तुलसीदास सर्वोत्कृष्ट कवि हैं|उन्हीं के पीछे
सूरदास का नंबर आता है,और तब देव का|”(पृ.176) सातवें अध्याय के ‘उपसंहार’ से पता
चलता है कि ‘नवरत्न’ के प्रथम संस्करण में कबीरदास नहीं थे,उन्हें दूसरी आवृत्ति में
शामिल किया गया|मिश्र बंधु लिखते हैं: -...हिंदी-नवरत्न की द्वितीयावृत्ति
प्रकाशित होते समय विचार उठा कि इस ग्रन्थ में कबीरदास को न रखना ठीक नहीं है
है,परन्तु जिन कवियों को एकबार नवरत्न में लिख चुके हैं ,उनमें से किसी को निकालना
भी अच्छा न लगा |परन्तु कठिनाई यह आई कि नव के स्थान पर दस कवि आने से ग्रन्थ
‘नवरत्न’ कैसे रह जाएगा?अतएव भूषण और मतिराम को ‘त्रिपाठी बंधु’ कहकर एक ही मान
लिया,और कबीर को भी स्थान दे दिया|आप वास्तव में पैगम्बर (ईश्वर के बसीठी),मिस्टिक
,सिद्ध,योगी,ब्रह्मानंदी ,समाधिस्थ आदि पहले हैं,और कवि पीछे|इसलिए हमने हिंदी के
नवरत्नों में आपको सातवाँ नंबर दिया|”(420) ‘नवरत्न’ के अन्य कवियों के बारे में मिश्रबंधुओं
के विचार हैं: ‘भूषण ने जातीयता का सन्देश दिया,और बड़े सुन्दर ढंग से|उनकी जातीयता
में राष्ट्रीयता का भाव कम,हिंदुत्व का विशेष आता है|फिर भी यह कहना पड़ता है कि उस
समय हिंदुत्व का सन्देश ही एक प्रकार से भारतीयता का सन्देश था ...केशवदास के कथन
अच्छे हैं,और उनकी रचना में व्यक्ति का सन्देश माना गया है,किन्तु हम इससे सहमत
नहीं हैं|...मतिराम का सन्देश साहित्योन्नति और उनकी भाषा अत्यंत ललित है|चंदबरदाई
ने कथा अच्छी कही है,और उनके वर्णन भी ठीक हैं|(32,छठे संस्करण की भूमिका से)
आपने बहुत सुंदर, संक्षिप्त और सारगर्भित टिप्पणी की है, सर। हिन्दी का इतिहास पढ़ते हुए जब इस पुस्तक का अनिवार्यतः उल्लेख होता है तो मन में एक उत्कट जिज्ञासा होती है कि आखिर इसका मजमून क्या है! जिज्ञासा का समाधान किए बगैर आगे बढ़ने पर मन में सदा के लिए एक कमी, एक कसक जड़ जमा लेती है और ऐसी ही चीजें हमारे मन के ज्ञान-भानु में कृष्ण-छिद्र बनकर बैठ जाती हैं। ऐसी जिज्ञासाओं का समाधान होता रहे तो उत्तम है। आपने बड़ा अच्छा काम किया।
ReplyDeleteउत्तम सामग्री ...प्रायः इतनी जानकारी भी नहीं होती मिश्र-बंधुओं व् उनकी पुस्तक के विषय में ..साधुवाद सर ...
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आपका धन्यवाद सर। इतनी सटीक टिप्पणी तो इनके आलोचना ग्रन्थ और लेखक द्वय के बारे में नहीं मिलती है।
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ReplyDeleteधन्यवाद सर। इस लेख को पढ़ने के बाद पुस्तक को पढ़ने की इच्छा और भी बलवती हो गई है।
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ReplyDeleteसंक्षिप्त किन्तु सार गर्भित लेख ।भारतेन्दु को अंतिम रत्न मिश्र बंधुओं का मानना पुस्तक पढ़े बिना नहीं समझ पाऊगा । सूर ओर तुलसी के स्थान निर्धारण पर भी संचय रहता हैं ।कुछ अधूरापन बिना जाने रहेगा ही।
ReplyDeleteसुंदर ओर सटीक प्रस्तुति पर बधाई सर।
Dhanyavad sir
ReplyDeleteइस लेख को पढ़ने के बाद में पुस्तक को पढ़ने की और इच्छा बलवती हो गई
Nice information for today's generation.......
ReplyDelete"हिंदी नाव रत्न"पुस्तक के लेखक "मिश्र बंधु"ने(1)सूर दास(2)चंद बरदाई(3)भूषण(4)मतिराम(5)बिहारी को"कान्यकुब्ज"जाति का लिखा है,जब कि वे सभी"ब्रह्म भट्ट ब्राह्मण"जाति के हैं।कृपया संशोधन करने की कृपा करें।भवदीय-डॉक्टर राम नाथ शर्मा
ReplyDeleteहिन्दी साहित्य के नवरत्नो के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteपुस्तक हिंदी नवरत्न की संक्षिप्त जानकारी सराहनीय है जो अन्य जगह पढ़ने को नही मिलती
👌🙏..
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